धन-धन शासनश्री रतनश्री

धन-धन शासनश्री रतनश्री

कर्यो अनशन थे स्वीकार, अंगीकार,
धन-धन शासनश्री रतनश्री जी।
जीवन रो काढ़यो सार, समता अणपार,
धन-धन शासनश्री रतनश्री जी।
दिल्ली में (हो रही) जय-जयकार, गुंजार।।
थे अनमोल रत्न भैक्षव शासन रा,
चढ़ता परिणामां अनशन धार्या।
करां अनुमोदना शतबार, हजार।।
मिलन सारिता थांरी न्यारी, ऋजुता मृदुता है मनहारी।
थांरो मधुर मधुर व्यवहार, सद्‌गुण भंडार।।
कर्मा स्यूं संग्राम करण नै, भवसागर स्यूं शीघ्र तरण नै।
छोटी भगिनी स्यूं पचक्ख्यो संथारो, करणै उद्धार।
साध्वी सुव्रतां जी पचखायो संथारो, कियो काम करार।।
द्वय भगिनी (जय-कुल) नै पचखायो संथारो,
थांरो ही उपकार है सारे
अब आप होग्या तैयार, कर मनोरथ साकार ।।
धीर गंभीर साध्वी सुव्रतांजी, भतीजी सुमनप्रभा जी
लाडेसर कार्तिक चिंतन में भरया, संस्कार उपकार।।
गुरु तुलसी संयम रा दाता, महाप्रज्ञ जीवन-निर्माता।
प्रभु महाश्रमण खेवणहार, तारणहार।।
लय - चाहे बिकज्यां हरो रुमाल