जीवन धन्य बनाया

जीवन धन्य बनाया

रतनश्री जी नाम तुम्हारा सार्थकता को पाया।
जीवन धन्य बनाया।।
संयम के सुन्दर रत्नों से भूषित तेरी काया।
राजधानी में दीक्षा लेकर नव इतिहास बनाया।
तुलसी गुरु के कर कमलों से संयम धन को पाया।।
श्री डूंगरगढ़ की पुण्य धरा पर तुमने जन्म लिया था।
चौरड़िया कुल को चमकाया अद्भुत काम किया था।
तीनों भगिनी और भतीजी ने भी साथ निभाया।।
देश-विदेशों की यात्रा कर शासन शान बढ़ाई।
चारित्रिक निर्मलता तेरी सबको खूब सुहाई।
ओजस्वी वाणी सुन तेरी जन-जन मन हर्षाया।।
बात बात प्रवचन-प्रवचन में गुरु की गरिमा गाती।
प्राण-त्राण गुरुदेव शरण हैं यह संस्कार जगाती।
शासन निष्ठा तेरी गहरी महाश्रमण सिर छाया।।
अनशन की यह छटा निराली महरौली में छाई।
अनुकम्पा का भवन सुहाना अनशन जोत जलाई।
राजधानी में रंग लगा है शक्ति स्रोत जगाया।।
लय - संयममय जीवन हो