ऊंची राखिज्यो भावां री  श्रेणी चढ़ती

ऊंची राखिज्यो भावां री श्रेणी चढ़ती

ऊंची राखिज्यो भावां री थे श्रेणी चढ़ती।
अन्तर झांकिज्यो जिण स्यूं रहसी श्रेणी बढ़ती ।।
घणां बरस साधुपण पाल्यो, करता धर्म प्रचार।
अब निर्मल परिणाम राखज्यो, आराधक पद सार।।
हाड़ मांस री पुतली आ, है मानव री देह।
जड़ चेतन रो भेद समझकर, मत करज्यो थे नेह।।
शारीरिक यदि वेदनावां, बढ़ ज्यावै भरपूर।
तो पिण मजबूती राखिज्यो, बण कर समता शूर।।
भूल चूक जो महाव्रतां में, लाग्यो हुवै अतिचार।
तो निश्छल आलोचना कर, हो ज्यावो तैयार।।
जैन धर्म भैक्षव शासन ओ, महाश्रमण सिर हाथ।
देव गुरु री आसथा आ, ले जाज्यो थे साथ ।।
संत, सती भाया बायां स्यूं, खमत खामणा सार।
सुखे सुखे जल्दी पाइज्यो, भव सागर स्यूं पार।।