मानो फैली रत्नप्रभा

मानो फैली रत्नप्रभा

शासनश्री सति रतनश्रीजी, जीवन धन्य बनाया है।
चढ़ते भावों से संथारा, जीवन को चमकाया है।।
नाम रतन है काम रतन सा, रतन सरीखी है आभा।
चेहरे पर है चमक रतन सी, मानो फेली रत्नप्रभा।
संयम रत्नों की आभा से, जीवन सफल बनाया है।।
शासन श्री सतिवर जी तेरा, जीवनन है यह वरदाई।
खूब किया है काम संघ का, गूंज रही यश-शहनाई।
कर यात्राएं सतिवर तुमने, गण का मान बढ़ाया है।।
दिल्ली में दीक्षा अनशन भी, दिल्ली में स्वीकार किया।
शासन माता की भूमि पर, तुमने काम कमाल किया।
देख तुम्हारा अद्भुत साहस, जन-जन मन हरसाया है।।
शासनश्री सति सुव्रताश्री जी, तन की छाया बन रहती।
भतीजी शासनश्री सुमनप्रभाजी तन-मन से सेवा करती।
चिन्तन-कार्तिक दोनों ने ही पाया तेरा साया है।
शासनश्री ने शासनश्री को संथारा पचखाया है।।
साध्वी अणिमा वर्ग समूचा, अनशन की महिमा गाए।
दो ऐसा आशीर्वर गण का, जस झंडा हम फहराएं।
खमतखामणा करते हम सब, पाया स्नेह सवाया है।।
दिव्य लोक से गण की सेवा, करते रहना तुम सतिवर।
गण का कर्ज चुकाना अब तुम, गण ही है यह श्रेयस्कर।
गुरुवर महाश्रमण ऊर्जा से ऐसा अवसर पाया है।।