गुणग्राहकता प्रसंशनीय ही नहीं अनुकरणीय है
‘शासनश्री’ साध्वी श्री रतनश्रीजी विदुषी अनुभवी गुरूभक्ता और मुदुभाषी साध्वी थी। गत वर्ष दिल्ली प्रवास में कई बार मिलने का काम पडा। उनकी सरलता, गुणग्राहकता प्रसंशनीय ही नहीं अनुकरणीय है। उन्होनें आचार्यश्री तुलसी से दिल्ली में दीक्षा ग्रहण की और आचार्यश्री तुलसी ने ही उन्हें अग्रगण्य बनाया। उनके द्वारा की गई देश-विदेश की पैदल यात्राएं स्व-पर कल्याणकारी बनी। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी और आचार्य श्री महाश्रमण जी की भी उनपर विशेष कृपा रही। आचार्य श्री महाश्रमण जी ने गंगानगर प्रवास में उन्हें ‘शासनश्री’ अलंकरण प्रदान किया। साध्वीश्री की अन्तरंग भावना को देखकर गुरूदेव की आज्ञानुसार सहोदरी ‘शासनश्री’ साध्वी सुव्रताजी ने उच्च मनोबल से संथारे का प्रत्याख्यान करवाया। उनके संथारे से दिल्ली अध्यात्म साधना केन्द्र स्थान अध्यात्ममय बन गया। दिल्ली के लोगों को लंबे समय तक साध्वीश्री की उपासना सेवा का अवसर मिला, यह भी सौभाग्य का विषय है। हर्ष से साध्वीश्री के शुभ संवाद मिलते रहते थे। दिवंगत आत्मा के उत्तरोत्तर विकास की मंगल कामना। सहयोगी सभी साध्वियों का योग उनकी चित्त समाधि में सहयोगी बना इसकी प्रसन्नता है।