अवसर खाली नहीं गया
पुण्यवती साध्वी रतनश्री ने जीवन को धन्य किया,
कैसे जीना, कैसे मरना, सबको पाठ पढ़ा दिया।।
गुरू प्रदत्त रत्नों की शोभा, तुमने खूब बढा़ई है।
अनशन करके सतिवर ! तुमने पाई खूब बधाई है।
ढलती उमर में जीवन का अन्तिम सार निकाल लिया।।
तीन मनोरथ पूर्ण हुए सतिवर ! तुमने जीती बाजी।
संत और सतियां दर्शन कर होते थे अतिशय राजी।
जागरूक जीवन सतिवर का अवसर खाली नहीं गया।।
चार बहिन भतीजी के संग गण उपवन में सदा खिली।
संयम के सुरंगे रंग में सतिवर मानो घुली मिली।
गुरूओं की पावन सन्निधि में अमृत रस ज्यों खूब पिया।।
राजधानी में करके अनशन नव इतिहास बनाया है।
जीवन के इस भव्य भवन पर स्वर्णिम कलश चढाया है।
शूरवीरता की प्रतिमा बन उन्नत जीवन ‘विजय’ जिया।।