विलक्षण एवं प्रवर्धमान अनशन के प्रति हृदयोद्गार
आप सचमुच में तेरापंथ धर्मसंघ के रतन हो। आपश्री ने आमरण अनशन स्वीकार कर संयम रतन की चमक को और अधिक शत गुणित किया है। जीवन के समरांगण में आप महायोद्धा बनकर कर्म रिपुओं को परास्त कर शिवपुर की ओर अग्रसर हैं। ‘शासनश्री’ सतीवरा! नमन आपके धृतिबल को। नमन आपके मनोबल को। नमन आपके आत्मबल को। नमन आपके संकल्प बल को। नमन आपके साहसिक निर्णय को। ‘अप्पाण्मेव जुज्झाई’ भगवान महावीर के इस उपदेशामृत का पान करके आपने एक वीर योद्धा की तरह आत्म विजय का कवच पहनकर अभ्युदय का मार्ग लिया है। आपकी भावधारा की पवित्रता, परिणामों की उज्जवलता के बारे में सुनकर सात्विक आल्हाद की अनुभूति हो रही है। आपकी सजगता प्रणम्य है। आपकी समता विलक्षण है। घोर वेदना के क्षण में चेहरे की आभा और प्रसन्नता के बारे में साध्वी सुधाप्रभा जी एवं साध्वी समत्वशा जी से सुनकर शरीर रोमांचित हो गया। आत्मा के ऊर्ध्वारोहण का पथ प्रशस्त करने वाला आपका यह दीपता अनशन जिनशासन एवं तेरापंथ धर्मसंघ के लिए कीर्ति स्तंभ बनकर अतिशय प्रभावना का हेतु बनेगा।
जन-जन के मानस मंदिर में त्याग का दीप प्रज्ज्वलित करने वाला यह अनशन तेरापंथ की स्वर्णिम ख्यात का गौरवशाली अध्याय बनेगा, ऐसा हमारा चिंतन है। लगता है आपने ‘आत्मा भिन्न शरीर भिन्न’ इस सूत्र को आपने आत्मसात कर लिया है। उत्तरोत्तर प्रवर्धमान अनशन की हार्दिक मंगलकामना। ‘शासनश्री’ साध्वी सुव्रतांजी, ‘शासनश्री’ साध्वी सुमनप्रभाजी, साध्वी कार्तिकप्रभाजी एवं साध्वी चिंतनप्रभाजी के निरन्तर सहकार एवं सेवाभाव के प्रति हृदय की अतल-अतल गहराईयों से हार्दिक अहोभाव। गुरूदेव शरणमस्तु।