दृश्य और अदृश्य, सारा संसार कर्म के चक्रव्यूह में फंसा हुआ है
अग्रवाल मित्र परिषद, तेरापंथ सभा दिल्ली एवं अणुव्रत न्यास के संयुक्त तत्वावधान में जन्माष्टमी के उपलक्ष में साध्वी डॉ. कुन्दनरेखाजी के सान्निध्य में 'कर्मव्यूह' विषय पर एक विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में मुख्य वक्ता राकेश आर्य ने आत्मचिंतन पर जोर देते हुए कहा कि हर मनुष्य बहुत कुछ प्राप्त कर सकता है। उन्होंने गीता का सार संक्षेप में बताते हुए कहा कि अनासक्ति और समर्पण, इन दोनों गुणों को आत्मसात कर इंसान महानता के पथ पर बढ़ सकता है। दास आरोही ने अपनी कविता के माध्यम से श्रीकृष्ण का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत में जन्म लेना सौभाग्य की बात है।
साध्वी कुन्दनरेखाजी ने कहा कि दृश्य और अदृश्य, सारा संसार कर्म के चक्रव्यूह में फंसा हुआ है, जिसके कारण अनंत काल से जन्म और मरण की परंपरा कहीं रुकने का नाम नहीं ले रही है। भगवान महावीर ने कहा है कि राग-द्वेषात्मक कषायजन्य प्रवृत्ति उस चक्रव्यूह में फंसने का मुख्य कारण है। साध्वी श्री ने आगे कहा कि यदि इंसान संयममय जीवन जीना सीख ले, तो कर्मों की परतों को हटाया जा सकता है। साथ ही, समताभाव और सरलता ऐसे मानवीय गुण हैं जिनके जरिए अनंत परंपरा को तोड़कर आत्मा का साक्षात्कार किया जा सकता है।
कर्म बड़े विचित्र होते हैं, पौद्गलिक सत्ता होने पर भी ये चेतना के अस्तित्व को ढककर सत्य मार्ग से विमुख कर सकते हैं। आवश्यकता है कि कर्म की जंजीरों को तोड़कर सच्ची स्वतंत्रता प्राप्त की जाए। राकेश वर्मा, पवन सिन्हा, टी. एस. मदान ने अपने अनुभवों को सबके साथ साझा किया और विषय को सरलता से प्रस्तुत कर सभी को भावविभोर कर दिया। कवि राजेश चेतन ने कुशलता के साथ कार्यक्रम का सफल संचालन किया, आभार ज्ञापन संजय जैन ने किया।