अंतर्राष्ट्रीय मैत्री दिवस के आयोजन से पूरे विश्व में बने मैत्री का माहौल : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अंतर्राष्ट्रीय मैत्री दिवस के आयोजन से पूरे विश्व में बने मैत्री का माहौल : आचार्यश्री महाश्रमण

क्षमापना दिवस का पावन दिन। क्षमा मूर्ति, समता के सागर आचार्य श्री महाश्रमण जी ने क्षमा का महत्व समझाते हुए फरमाया- प्रश्न किया गया है कि क्षमापना से जीव को क्या मिलता है। उत्तर दिया गया- क्षमापना से आह्लाद भाव - प्रसन्नता प्रकट होती है। सब प्राण-भूत आदि जीवों के प्रति जीव मैत्री भाव कर लेता है। मैत्री भाव से भाव विशुद्धि हो जाती है। भाव शुद्ध करके प्राणी निर्भय बन जाता है। मैत्री, क्षमापना और निर्भयता का आपस में संबंध है। हमने पर्युषण महापर्व की आराधना की। भगवती संवत्सरी की भी आराधना की। संवत्सरी को पिछला खाता बन्द कर दिया जाए। पिछले वर्ष के कलुष भावों के सारे कागजों को फाड़ दें। क्षमापना दिवस पर विश्व मैत्री दिवस भी पूरे विश्व में आयोजित हो। अंतर्राष्ट्रीय मैत्री दिवस भी आयोजित हो जाए तो पूरे विश्व में मैत्री का माहौल बने, ऐसा प्रयास किया जा सकता है। प्रतिक्रमण में 84 लाख जीव योनि से खमत खामणा की
विधि है। मंगल प्रवचन के साथ ही आचार्य प्रवर ने खमतखामणा का क्रम प्रारम्भ करते हुए साध्वीप्रमुखाश्री, मुख्यमुनिश्री, साध्वीवर्याश्री से खमतखामणा करते हुए मंगल आशीर्वाद भी प्रदान किया। आचार्यश्री ने समस्त साधु-साध्वीवृंद, समणीवृंद से भी खमतखामणा की तथा चित्त समाधि का मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। मुमुक्षु बहनों, उपासक श्रेणी, सभी संस्थाओं के पदाधिकारियों व श्रावक-श्राविकाओं से भी पूज्यवर ने खमत खामणा की। अनेक जैन सम्प्रदायों के आचार्यों, जैनेत्तर धर्म गुरूओं और धर्म संघ से मुक्त साधु-साध्वी व समणियों व सामाजिक संस्थाओं, गुरूकुल वास के कर्मचारियों से भी खमत खामणा की।
आचार्य प्रवर ने चारित्रात्माओं को एक-एक उपवास की तथा श्रावक-श्राविकाओं को एक वर्ष में तीन उपवास की आलोयणा बताई। परम पूज्य कालूगणी के महाप्रयाण के अवसर आचार्यश्री ने उनको श्रद्धा के साथ वंदन किया। तदुपरान्त साधु-साध्वियों ने बारी-बारी से आचार्यश्री से खमतखामणा की। तदुपरान्त साधु-साध्वियों ने आपस में खमतखामणा की। श्रावक-श्राविकाओं आचार्यश्री से तथा परस्पर भी खमतखामणा की।  साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी जी ने कहा कि जहां गांठें हैं, वहां बन्धन है। जहां गांठें खुली हैं, वहां मुक्ति है। आज गांठों को बान्धने का नहीं, खोलने का दिन है। अपना अन्तः निरीक्षण करें कि जिस किसी के साथ वर्षभर में गांठ बन्ध गई है, उसे खोलने का प्रयास करूं। कर्मों के भार को हल्का कर मुक्ति की ओर प्रस्थान करें। मुख्यमुनि श्री महावीरकुमारजी ने कहा कि 84 लाख जीव योनि में जितने जीव हैं, उनसे खमत खामणा करना अच्छी बात है। आज उन सबसे खमत खामणा करने का दिन है जिनके साथ वर्ष भर में आपका व्यवहार हुआ हो। जिस किसी के साथ कलुष भाव हो या दूसरे ने किया हो तो उन सभी से आज के दिन अवश्य खमत खामणा करें। क्षमा वही कर सकता है जो वीर होता है। हम अहंकार मुक्त होकर इस क्षमा पर्व को व्यावहारिक धरातल पर लाने का प्रयास करें। साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने कहा कि मार्दव के द्वारा मान को जीतें और ऋजुता के द्वारा माया को जीतें। अहंकार का वर्जन कर सरलता को अपनायें। जहां विनम्रता और सरलता होती है, वहां क्षमा होती है। आत्मा जब विनम्र और सरल बन जायेगी तो क्षमा का आदान-प्रदान कर सकेंगे। सभी संस्थाओं की ओर से व्यवस्था समिति अध्यक्ष संजय सुराणा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेशकुमार जी ने “बड़े प्रेम से मिल जुल सीखें मैत्री मंत्र महान रे“ गीत का सुमधुर संगान किया।