मानव जीवन का धार्मिक दृष्टि से लाभ उठाने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण
केसूरनगर, 3 जून, 2021
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रात: विहार कर मालवा क्षेत्र के केसूरनगर में पधारे। केसूरनगर से अनेक साधु-साध्वियाँ धर्मसंघ में दीक्षित हैं। मुनि बिरधीचंद जी भी केसूरनगर से ही थे। परम पावन ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन आगमों में एक आगम उत्तराध्ययन। उसका दसवाँ अध्ययन और उसके श्लोक में बताया गया है कि यह मनुष्य भव दुर्लभ है। संसारी प्राणियों को लंबे काल तक भी यह मनुष्य भव नहीं मिलता है।
कर्मों को विपाक अपने आपमें गाढ़ा होते हैं। गौतम! समय मात्र भी प्रमाद मत करो। जो मानव जीवन दुर्लभ बताया गया है, वह मानव जीवन गौतम को तो उपलब्ध था। हम सभी को भी वह दुर्लभ कहलाने वाला मानव भव अभी उपलब्ध है, जो सुलब्ध-उपलब्ध है, उसका हम लाभ उठाएँ।
चार चीजें संसार में दुर्लभ बताई गई हैंमनुष्य जन्म, श्रुति धर्म का श्रवण करना, श्रद्धा और संयम में पराक्रम। चार चीजों में पहली चीज हैमनुष्य जन्म दुर्लभ है। 84 लाख योनियाँ बताई गई हैं, उसमें यह मनुष्य की योनी है, वह कितने जीवों को तो अनंतकाल बीत गया, पर नहीं मिला। जैसे अव्यवहार राशि के जीव। वे तो वनस्पतिकाय में बैठे हैं। द्विन्द्रिय-त्रिन्द्रिय भी नहीं बने।
प्राणियों में सबसे कम विकसित प्राणी एकेंद्रिय होते हैं। संज्ञी पंचेंद्रिय सबसे ज्यादा विकसित होते हैं। असंज्ञी पंचेंद्रिय भी अविकसित प्राणी होते हैं। हमारी दुनिया में ऐसा लगता है कि धर्म की ज्यादा साधना मन वाला प्राणी मनुष्य ज्यादा कर सकता है। ये समनस्क मनुष्य साधना करते-करते केवलज्ञानी बन मोक्ष जा सकते हैं।
ऐसा मानव जीवन जो कितना मूल्यवान-अमूल्य है कि इतनी ऊँची साधना केवल संज्ञी मनुष्य ही कर सकता है। जिसको ये प्राप्त है, उनको इसका लाभ उठाना चाहिए। जो आदमी हिंसा आदि पाप-वृत्ति करता है, वह प्राप्त मनुष्य जन्म को खो देता है। जो प्रमत्त मनुष्य इस मनुष्य जन्म को व्यर्थ गँवाता है, वो आदमी मानो सोने के थाल में घर का कचरा डालता है। जैसे आदमी को अमृत प्राप्त हो गया है, वो उसे न स्वयं पीता है, न दूसरों को पिलाता है, बल्कि कीचड़ लगे पैरों को धोने में काम लेता है।
मानो एक श्रेष्ठ हाथी प्राप्त है, उस पर सवारी न कर लकड़ियों का भार ढोता है। एक आदमी को चिंतामणि रत्न मिल गया, उसका उपयोग आशा-चिंतन में न कर कौआ उड़ाने में करता है। ये काम करने वाला आदमी नादान-मूर्ख है। वैसे ही मनुष्य जन्म पाकर पापों में जाने वाला आदमी मूर्ख है।
जिनको मानव जीवन मिला हुआ है, वो स्थायी तो है नहीं। कभी न कभी तो ये मानव जीवन पूरा होता है। वापस क्या पता, कैसे मिलेगा? यह मानव जीवन कैसे दुर्लभ है, यह एक चक्रवर्ती की खीर के दृष्टांत से समझाया। कहाँ चक्रवर्ती की खीर और कहाँ साधारण भोजन। वापस कब चक्रवर्ती के घर का नंबर आएगा। इसी तरह मानव जीवन खो दिया तो फिर न जाने वापस कब मिलेगा।
इस मानव जीवन का हम धार्मिक दृष्टि से लाभ उठाने का प्रयास करें। जीवन में सम्यक् और चारित्र की अच्छी आराधना हो जाए। जीवन में आदमी पापों से बचने का प्रयास करे। गृहस्थ में अणुव्रतों की आराधना की जा सकती है। छोटे-छोटे व्रत ग्रहण कर यह मानव जीवन दुर्लभ मिला हुआ है, उसका खूब लाभ उठाएँ। हम मानव जीवन का अच्छा लाभ उठाने का प्रयास करें और अच्छी बात-संत वाणी जहाँ सुनने का या पढ़ने का मौका मिले, अच्छा काम करें और दुर्लभ मानव जीवन को सफल बनाने का प्रयास करें, सुफल बनाएँ।
अहिंसा यात्रा और मालवा यात्रा के दौरान इस मध्य प्रदेश में आज केसूर आए हैं। अनेक चारित्रात्माएँ हमारे धर्मसंघ की केसूर से संबंधित हैं। यहाँ की जनता में भी खूब धार्मिक भावना अच्छे संस्कार पुष्ट रहें।
पूज्यप्रवर के स्वागत एवं अभिवंदना में महिला मंडल अध्यक्षा शांता देवी टेबा, मंत्री संगीता बम्बोली, कन्या मंडल, किशोर मंडल से अनुराग बम्बोली, श्रुति चौधरी, मंजु टेबा, तेयुप से संदीप टेबा, तेरापंथ सभा अध्यक्ष विमल पितलिया, मंत्री अनिल चौधरी, अशोक चौधरी, संजय टेबा, महेश बम्बोरी (मालवा सभा से) ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।