ज्ञानशाला दिवस पर विविध आयोजन

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ज्ञानशाला दिवस पर विविध आयोजन

भारतीय संस्कृति ऋषि प्रधान और कृषि प्रधान संस्कृति रही है। आहार-विहार और खानपान की शुद्धि के अभाव में चेतना विकृत बन रही है। वर्तमान युग में फास्ट फूड और नशे का बढ़ता चलन विभिन्न प्रकार की शारीरिक बीमारी और मानसिक विकृति पैदा कर रहा है। नशा अपराधी मनोवृत्ति की जड़ है। ज्ञानशाला वह नर्सरी है जहां बचपन रूपी पौधों को सिंचन प्रदान कर विकास की दिशा प्रदान की जाती है। ज्ञानशाला बच्चो के संस्कारों की निर्माणशाला है। संस्कृति संरक्षण व संवर्धन का महत्वपूर्ण कार्य करते हुए आचार्यश्री तुलसी ने समाज को ज्ञानशाला रूपी महत्वपूर्ण अवदान प्रदान किया। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने इसे निरंतर संरक्षण प्रदान किया और वर्तमान आचार्यश्री महाश्रमणजी के पावन मार्गदर्शन मे यह निरंतर गतिमान है। उक्त आशय के उद्गार साध्वी उर्मिलाकुमारी जी ने ज्ञानशाला दिवस के आयोजन पर तेरापंथ भवन में उपस्थित बच्चों और श्रावक-श्रविकाओं के समक्ष व्यक्त किया। आपने कहा कि आजकल अभिभावक बच्चों को अच्छे स्कूल-कॉलेज में भेजने की जितनी चिंता करते हैं, दूरस्थ क्षेत्रों में पढ़ने भेजते हैं। उतनी चिंता उनके संस्कारों के सुरक्षा के लिए नहीं करते है। आपने महामात्य चाणक्य के शब्दों को उद्धरण करते हुए कहा कहा कि जहां बरसात नहीं होती वहां फसले खराब होती है, और जहां संस्कार नहीं दिए जाते, वहां नस्ले खराब होती है। साध्वी मृदुलयशाजी ने कहा कि मां बच्चों के जीवन की सबसे बड़ी निर्माता है। बचपन से छोटे बच्चों में सदाचार का विकास, रात्रि भोजन त्याग, जमीकंद त्याग, नियमित संत दर्शन और नियमित ज्ञानशाला जाने के धार्मिक संस्कारों का निर्माण करना चाहिए। ज्ञानशाला दिवस के अवसर पर बच्चों ने विभिन्न कंठस्थ ज्ञान गीत आदि विधाओं में सुंदर प्रस्तुति देते हुए ज्ञानशाला के महत्व को समझाया तथा बच्चों ने सुंदर संवाद की भी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का प्रारंभ साध्वीश्री द्वारा नमस्कार महामंत्र के उच्चारण से हुआ। कार्यक्रम का कुशल संचालन ज्ञानशाला व्यवस्थापिका पुष्पा पालरेचा ने किया। इस अवसर पर ज्ञानशाला परिवार व ज्ञानशाला के गत वर्ष के प्रायोजक हरकचंद केसरीमल भंडारी परिवार द्वारा बच्चों को पुरस्कृत भी किया गया।