संबोधि

स्वाध्याय

संबोधि

कृतव्रतकर्म :
यह दूसरी प्रतिमा है। इसका कालमान दो महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धि के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक अनेक शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास आदि का सम्यक् प्रतिष्ठापन करता है, किन्तु वह सामायिक और देशावकाशिक का अनुपालन नहीं करता।
कृतसामायिक :
यह तीसरी प्रतिमा है। इसका कालमान तीन महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक प्रातः और सायंकाल सामायिक और देशावकाशिक का पालन करता है, परंतु पर्व-दिनों में प्रतिपूर्ण पौषधोपवास नहीं करता।
पौषधोपवासनिरत :
यह चौथी प्रतिमा है। इसका कालमान चार महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णमासी आदि पर्व दिनों में प्रतिपूर्ण पौषध करता है परन्तु 'एकरात्रिक उपासक प्रतिमा' का अनुगमन नहीं करता।
दिन में ब्रह्मचारी (कायोत्सर्ग प्रतिमा)
यह पांचवी प्रतिमा है। इसका कालमान पांच महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक 'एकरात्रिकी उपासक प्रतिमा' का सम्यक् अनुपालन करता है तथा स्नान नहीं करता, दिवाभोजी होता है, धोती के दोनों अंचलों को कटिभाग में टांक लेता है-नीचे से नहीं बांधता, दिवा ब्रह्मचारी और रात्रि में अब्रह्मचर्य का परिमाण करता है।
दिन और रात में ब्रह्मचारी :
यह छठी प्रतिमा है। इसका कालमान छह महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक दिन और रात में ब्रह्मचारी रहता है। किन्तु सचित्त का परित्याग नहीं करता।
सचित-परित्यागी :
यह सातवीं प्रतिमा है। इसका कालमान सात महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक सम्पूर्ण सचित्त का परित्याग करता है, किन्तु आरंभ का परित्याग नहीं करता।
आरंभ-परित्यागी :
यह आठवीं प्रतिमा है। इसका कालमान आठ महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक आरंभ-हिंसा का परित्याग करता है, किंतु प्रेष्यारंभ का परित्याग नहीं करता।
प्रेष्य-परित्यागी :
यह नौवीं प्रतिमा है। इसका कालमान नौ महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक प्रेष्य आदि हिंसा का परित्याग करता हैं, किंतु उद्दिष्टभक्त का परित्याग नहीं करता।
उद्दिष्टभक्त-परित्यागी :
यह दसवीं प्रतिमा है। इसका कालमान दस महीनों का है।
इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक उद्दिष्ट भोजन का परित्याग करता है। वह सिर को क्षुर से मुंडवा लेता है
या चोटी रख लेता है। घर के किसी विषय में पूछे जाने पर जानता
हो तो कहता है-' मैं जानता हूं' और न जानता हो तो कहता है- 'मैं
नहीं जानता।'