मद और शोक दोनों में रखें समता : आचार्यश्री महाश्रमण
अध्यात्म साधना के परम साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमृत देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि मनुष्य जीवन में लाभ और अलाभ की बात होती है। साधु को लाभ की स्थिति में ज्यादा प्रसन्नता तथा अलाभ में बहुत ज्यादा शोक नहीं करना चाहिए। साधु को मद और शोक दोनों से भी बचने का, समता भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। साधु को आहार नहीं मिले तो सोचे कि कोई खास बात नहीं, मेरे तपस्या हो जायेगी। दोनों स्थितियों में साधु को समता रखनी चाहिये। अर्हत वन्दना का सूत्र है-
'लाभालाभे सुहे-दुक्खे, जीविए मरणे तहा।
समो निन्दा-पसंसासु तहा माणावमाणओ।'
आगम वाणी के कुछ सूत्र अर्हत वन्दना में है। लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, निंदा-प्रशंसा, मान और अपमान इन द्वंदात्मक स्थितियों में सम रहने की प्रेरणा दी गई है। साधु को समतामूर्ति, क्षमामूर्ति, त्यागमूर्ति, अहिंसामूर्ति, दयामूर्ति, यथार्थमूर्ति, महाव्रतमूर्ति होना चाहिए। गृहस्थों को भी समता का भाव रखना चाहिये। समता की साधना अपने आप में जाना है। राग-द्वेष विषमता की स्थितियां है।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्वावधान में सेवा साधक श्रेणी के त्रिदिवसीय शिविर का प्रथम आयोजन पूज्य सन्निधि में हुआ। महासभा अध्यक्ष मनसुखलाल सेठिया तथा राष्ट्रीय संयोजक किशनलाल डागलिया ने इस संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किए। आचार्यप्रवर ने पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्वावधान में सेवा साधक श्रेणी की परियोजना सामने आई है। समाज में अनेक गतिविधियां हैं, मानव जीवन में धार्मिक-आध्यात्मिक अच्छी साधना भी चले और धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा देने का भी प्रयास हो। श्रीडूंगरगढ़ से समागत संघ पूज्यवर की सन्निधि में पहुंचा, इस संदर्भ में विकास परिषद के सदस्य बन्नेचन्द मालू ने अपनी भावना श्री चरणों में प्रस्तुत की।
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की राष्ट्रीय अध्यक्ष सरिता डागा ने आचार्य प्रवर की सन्निधि में 49वें राष्ट्रीय अधिवेशन 'संरक्षणम्' के शुभारंभ की घोषणा की। महिला मंडल की बहनों ने अभिवन्दना गीत की प्रस्तुति दी। पूज्यवर ने पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि समाज में पुरूष और स्त्री दोनों का अस्तित्व होता है। दोनों का समाज निर्माण में योगदान रहता है। गुरूदेव तुलसी ने अनेक अवदान दिये, उनमें से एक था नया मोड़। अभातेममं तेरापंथ समाज की महिलाओं का संगठन है, इसके माध्यम से महिलाओं का विकास हुआ है। धर्म के क्षेत्र में पुरूषों से ज्यादा महिलाएं अग्रसर होती हैं। महिलाओं में श्रद्धा भावना अच्छी होती है। 'संरक्षणम्' के अन्तर्गत कन्याओं की सुरक्षा हो, उनमें अच्छे संस्कारों का विकास हो। महिलाओं में शिक्षा, चिन्तन शक्ति का विकास हो तो वे नेतृत्व भी कर सकती है। इस संस्था को साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभाजी का अतीत में एवं वर्तमान में साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी से अच्छा मार्गदर्शन मिल रहा है। साध्वीप्रमुखाश्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमारे समाज में नारी को लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा के रूप में देखा जाता है। हमारे देश में नारी का गौरवपूर्ण इतिहास है। एक समय था जब नारी को अनेक सामाजिक कुरीतियों को सहना पड़ता था पर आज दृश्य दूसरा है। आज नारी ने हर क्षेत्र में विकास किया है। महिलाएं शिक्षित हो रही हैं, उनमें जागृति आ रही है। उसका एक रूप है- अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल। इसके माध्यम से समाज की कन्याओं का भी विकास हो रहा है।
गुजरात राज्य के राज्यपाल महामहिम आचार्य देवव्रत ने कहा कि मैं तो आचार्यश्री महाश्रमणजी के परिवार का सदस्य जैसा बन गया हूँ। मुझे भी यहां आने से बहुत सी प्रेरणाएं मिलती हैं। आचार्यश्री ने तो पूरा जीवन मानव कल्याण में लगा दिया है। जैन समाज का तेरापंथ धर्मसंघ मानव कल्याण के सामाजिक कार्य एवं संस्कारों को स्थापित करने का कार्य हो रहा है। प्राचीन काल में नारी की स्थिति पुरूषों से भी ऊंची थी। मध्यकाल में नारी का दमन हुआ पर वर्तमान में नारी शिक्षित हो विकास की ऊंचाइयों को छू रही है। शिक्षा एवं अन्य कई क्षेत्रों में हमारी बहन-बेटियों ने कीर्तिमान स्थापित किये हैं। आभार ज्ञापन महामंत्री श्रीमती नीतू ओस्तवाल ने किया। राष्ट्रगान से कार्यक्रम संपन्न हुआ।