मानव जीवन पाकर धर्म को ना करें इग्नोर : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मानव जीवन पाकर धर्म को ना करें इग्नोर : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम की व्याख्या कराते हुए फरमाया कि आयुष्य को बढ़ाया नहीं जा सकता। आदमी के मन में कामनाएं बहुत ज्यादा हैं और जीवनकाल काफी सीमित है। किसी को सौ पार का आयुष्य भी प्राप्त हो जाए और किसी को पचास भी नहीं आ पाता है, आयुष्य की निश्चिंतता नहीं है। आदमी को ध्यान देना चाहिए कि यह मनुष्य जन्म दुर्लभ है, धर्म की दृष्टि से यह मनुष्य जन्म उत्कृष्ट है। जो साधना इस मनुष्य जीवन में की जा सकती है वह अन्य योनि में नहीं की जा सकती है। मनुष्य में तो पहले से लेकर चौदहवां गुण स्थान हो सकता है, अन्य गतियों में यह संभव नहीं है। सौभाग्य से मानव जीवन प्राप्त हो गया है तो ऐसा कार्य करना चाहिए कि अब उसे अधोगति में नहीं जाना पड़े। आदमी धर्म का जीवन जीने का प्रयास करे, अगर पाप कर्म करेगा तो आगे उसे दुर्गति में जाना पड़ सकता है।
सब साधु बन जाएं यह मुश्किल है। गार्हस्थ्य में रहते हुए भी समता-शांति, धार्मिकता और संयम से युक्त जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ का अपना कर्तव्य हो सकता है पर कर्तव्य को निभाते हुए भी आदमी धर्म को इग्नोर न करे। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार कर्म चतुष्टय हैं। मनुष्य झूठ व चोरी से बचे। गृहस्थ जीवन में अहिंसा रहे, अनावश्यक हिंसा से बचाव का प्रयास हो। जीवन में गुस्सा न हो, संयम और सादगी रखने का प्रयास करें, धर्म की उपासना करें। कल की चिंता में आज का दिन नहीं खोयें, जागरूकता से जीवन जीएं। धर्म का टिफिन साथ में रहे, जितना जीवन काल है, हमें धर्म के रास्ते पर चलने का प्रयास करना चाहिये।
साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय दर्शन में दो प्रकार की परम्परा रही है- नास्तिक और आस्तिक। आस्तिकवाद आत्मवाद, कर्मवाद व पुनर्जन्म में विश्वास करता है। नास्तिकवाद इनमें विश्वास नहीं करता है। उनका मानना है कि जो वर्तमान है, वही है। कुछ लोग जैन दर्शन को भी नास्तिक मानते हैं कि जैन दर्शन ईश्वर में विश्वास नहीं करता। पर उन्होंने जैन दर्शन की गहराई को नहीं जाना है। जैन दर्शन में ईश्वर को स्वीकार किया है, पर उनकी अलग व्याख्या की है। जैन दर्शन कर्ता के रूप में ईश्वर को नहीं मानता। वह जीव की परम अवस्था, आत्मा के शुद्ध स्वरूप मोक्ष को ही ईश्वर मानता है। जैन दर्शन का ईश्वर परम ज्योति है। जैन दर्शन
कर्म में विश्वास करता है तो पुनर्जन्म में भी विश्वास करता है। साध्वी श्रुतप्रभाजी ने सुमधुर गीत की प्रस्तुति दी। परम पावन आचार्य प्रवर की अनुज्ञा से नोखा में 'शासन गौरव' साध्वी राजीमतीजी द्वारा 16 सितंबर को मुमुक्ष मानवी की जैन भागवती दीक्षा हुई थी। नोखा का संघ पूज्यवर की सन्निधि में पहुंचा। नोखा महिला मंडल ने गीत की प्रस्तुति दी। नोखा सभाध्यक्ष शुभकरण चोरडिया ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर की सन्निधि में तथा अभातेममं के तत्वाधान में आचार्य तुलसी शिक्षा परियोजना के अंतर्गत तत्वज्ञान व तेरापंथ प्रचेता कार्यशाला के आयोजन के संदर्भ में परियोजना की निदेशक पुष्पा बैंगाणी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ युवक परिषद् एवं तेरापंथ किशोर मंडल अहमदाबाद के सदस्यों का संघ पूज्य चरणों में उपस्थित हुआ। तेयुप अहमदाबाद ने गीत की प्रस्तुति दी। अहमदाबाद तेयुप अध्यक्ष ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। पटना से समागत तनसुख बैद ने कल्याण मंदिर स्तोत्र का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद पूज्यवर को समर्पित किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।