इच्छा को कम, लोभ का क्षय तथा संतोष धारण करने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

इच्छा को कम, लोभ का क्षय तथा संतोष धारण करने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

शान्ति का सन्देश प्रदान करने वाले युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि काम का अतिक्रमण करना मुश्किल होता है। काम का अर्थ कार्य करना भी होता है, कामना करना भी है और इन्द्रिय विषयों का सेवन भी होता है। यहां काम का अर्थ कामना से बताया है कि पदार्थों का संग्रह करना कामना है। काम के दो प्रकार- इच्छा और मदन। सोना, चांदी आदि पदार्थों को प्राप्त करने की कामना इच्छा कहलाती है।
मदन का अर्थ है- शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श के भोग की कामना। काम एक संज्ञा है, इसको लांघना मुश्किल होता है क्योंकि काम की संज्ञा अनंतकाल से प्राणी के भीतर रहती है। इच्छाओं को कम करना, लोभ का क्षय तथा संतोष को धारण करना बड़ा कठिन काम होता है।
लोभ को पाप का बाप कहा जाता है। राग का अंग लोभ है। लोभ के कारण ही कई पाप होते हैं, लोभ दुःख का कारण भी होता है। कामानुवृद्धि से दुःख पैदा होता है। जो वीतराग बन जाता है, वह दुःख का पार पा जाता है। साधना की गहराई में जाने वाला साधक कामनाओं का पार पा लेता है। काम का अतिक्रमण हो तो कामना भी कम हो जायेगी। भौतिक इच्छाओं पर सीमाकरण करना चाहिये। तीन बातों पर संतोष करना चाहिये- स्वदार, भोजन और धन में। तीन बातों में संतोष नहीं करना चाहिये- अध्ययन, जप और दान में। दान लौकिक और लोकोत्तर हो सकता है। सुपात्र दान धर्म का, गरीब को दान दया भाव बढ़ाने का, मित्र को दान प्रीति का कारण बन सकता है। ज्ञान दान और अभयदान आध्यात्मिक दान है। काम का अतिक्रमण मुश्किल है, पर हम मुश्किल कार्य को करने का प्रयास करें।
भारतीय जनता पार्टी गुजरात प्रदेशाध्यक्ष एवं केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री सी. आर. पाटिल पूज्यवर की सन्निधि में पहुंचें। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा- आचार्यजी समाज को नीति पर चलने की प्रेरणा देते हैं। राजनीति में भी मूलभूत भावना सेवा की है। राजनेता को धर्म पर आस्था रखनी होगी तभी वह नीति पर चल सकेगा, जिससे देश और समाज का भला हो सकेगा। आप नशामुक्ति के लिए भी जन-जन को प्रेरित कर रहे हैं। मैं ऐसे आचार्यश्री को बारम्बार प्रणाम करता हूं।
आचार्यप्रवर ने उन्हें आशीष प्रदान करते हुए कहा कि आज जलशक्ति मंत्रीजी का आना हुआ है। जल की बात है तो जल को रत्न की संज्ञा प्रदान की गयी है। धरती पर तीन रत्न हैं- जल, अन्न और सुभाषित। जैन दर्शन में कहा गया है कि जल भी जीव है, उसके प्रति अहिंसा का भाव रखें। हम सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की प्रेरणा देते हैं। आचार्यश्री तुलसी ने अणुवत के छोटे-छोटे नियमों से लोगों को सत्पथ की प्रेरणा दी। राजनीति में भी नैतिकता बनी रहे। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।