पदार्थों में न हो मोह, आसक्ति अथवा राग-द्वेष : आचार्यश्री महाश्रमण
जिन वाणी के व्याख्याता, महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम की विवेचना कराते हुए फरमाया कि दुनिया में जितने भी पदार्थ हैं, उन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है- काम और भोग। शब्द और रूप काम है। गंध, रस और स्पर्श ये तीन भोग हो जाते हैं। शब्द हमारे कान में पड़ जाते हैं पर हम उसे देख नहीं पाते, रूप भी दूर है, आँख के अन्दर नहीं पड़ता है, नाक द्वारा गंध ग्रहण की जाती है, रस को जीभ द्वारा जाना जा सकता है, स्पर्श भी शरीर के लगता है, तब पता चलता है।
श्रोत्र व चक्षु इन्द्रिय को कामी कहा गया है, शेष तीन इन्द्रियां भोगी कहलाती है। काम-भोग तृप्ति देने में सक्षम-समर्थ नहीं है, इनसे अतृप्ति और बढ़ सकती है। इन्द्रिय विषय का भोग करने पर भी शाश्वत-स्थायी सुख नहीं मिलता, ये दुःख के कारण बन सकते हैं। इन्द्रिय विषयों से शाश्वत शान्ति नहीं मिलती है। अग्नि में ईंधन डालने से वह तृप्त नहीं होती और बढ़ती जाती है। शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श से सुख की कामना नहीं करनी चाहिये। हमें तो इन्द्रियतीत सुख की, मोक्ष की कामना करनी चाहिये। वर्तमान में यदि काम-भोगों से अनासक्त हो जायें, संतोष को अपना लें तो आन्तरिक सुख की अनुभूति हो सकती है।
साधु को आहार-पानी मिल सके तो ठीक, न मिले तो भी ठीक है। अगर आहार-पानी नहीं मिला तो तपस्या हो जायेगी, आत्मा को पोषण मिल जायेगा और मिला तो शरीर को पोषण मिल जायेगा।
भगवान ऋषभ को साधिक 13 महीने तक आहार नहीं मिला, वर्षीतप हो गया। वर्तमान में वर्षीतप चलता है वह आसान है पर भगवान ऋषभ का तो विशिष्ट वर्षीतप था।
पदार्थ-काम-भोग हमारे साधन बन सकते हैं। शरीर को भाड़ा देना पड़ता है, तभी शरीर चलेगा। पदार्थ का उपयोग करें, पर पदार्थों में मोह, आसक्ति या राग-द्वेष न हो। साधना की दृष्टि से पदार्थों के प्रति संयम रखें, ऊनोदरी करें। इच्छा परिणाम व्रत और उपभोग परिभोग परिणाम व्रत भी संयम की साधना है। समय जा रहा है, हम समय का अच्छा धार्मिक साधना-आराधना में उपयोग करते रहे। संसार से मुक्ति के लिए काम-भोगों से अनासक्ति रखें।
बड़ी दीक्षा
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने सात दिन पूर्व दीक्षित हुई दो साध्वियों को बड़ी दीक्षा (छेदोपस्थापनीय चारित्र) प्रदान किया। आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए आचार्यश्री ने नवदीक्षित साध्वियों को छेदोपस्थापनीय चारित्र में स्थापित करते हुए पावन आशीर्वाद प्रदान किया। जैन संस्कार विधि राष्ट्रीय सम्मेलन का मंचीय कार्यक्रम आचार्यप्रवर की मंगल सन्निधि में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्त्वावधान में आयोजित द्विदिवसीय जैन संस्कारक राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन मंचीय कार्यक्रम में अभातेयुप राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेश डागा तथा मुख्य प्रशिक्षक डालमचंन्द नौलखा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। जैन संस्कारकों ने समूह गीत की प्रस्तुति दी।
पूज्यवर ने आशीर्वचन फरमाते हुए कहा कि जीवन में अनेक प्रसंग आते हैं। गृहस्थों के संसार में संस्कार रहें, उनमें संयम और सादगी को प्रश्रय मिले, साथ में आर्षवाणी का भी उपयोग हो। आर्षवाणी और सादगी से संस्कारों में वृद्धि होती है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।