संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

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संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

जैन धर्म का सर्वोच्च महान पर्व संवत्सरी त्याग तप आराधना के भावों से भावित है। इस दिन साधक अपनी साधना को नया रूप देने को तत्पर रहता है। यह मन की पवित्रता और अतीत के प्रतिलेखन का महान दिन है। इस आध्यात्मिक पर्व पर व्यक्ति आत्मकेन्द्रित हो अतीत की भूलों का सिंहावलोकन करता है। इस पर्व में आबाल वृद्ध सहर्ष अपनी आत्मा को शुद्ध विचारों और भावों से सराबोर करता है। ये विचार मुनि मोहजीतकुमार जी ने तेरापंथ भवन के भिक्षु सभागार में पर्युषण पर्व आराधकों के मध्य कही। संवत्सरी महापर्व का शुभारम्भ नमस्कार महामंत्र के सस्वर संगान से हुआ। मुनि भव्यकुमार जी ने चित्त सम्भूति के रोमांचक सफर को पूर्णाहुति दी। मुनि जयेशकुमार जी ने संवत्सरी को शाब्दिक परिभाषा देते हुए कहा कि वत्सर का अर्थ है वर्ष और सम्पूर्ण वर्ष को एक दिन में समेटने का नाम है संवत्सरी। व्यक्ति सोचता है एक दिन सारा धर्म ध्यान करके पूरे साल की भरपाई कर लूं। पर जीवन के हर क्रम में निरंतरता आवश्यक होती है। इस दिन हम आत्मचिंतन कर यह सोचें कि अब तक मैंने क्या हासिल किया और अभी क्या करना शेष है? फिर संकल्पित हो शेष को अशेष बनाने की दिशा में कदम बढ़ा दें। मुनि मोहजीतकुमारजी ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के परिप्रेक्ष्य में जन्म, साधना परिषहों के वर्णन के साथ उत्तरवर्ती आचार्य जम्बूस्वामी की गेय कथा को प्रस्तुत कर संयम की भावना को जागृत किया।
मुनि भव्यकुमारजी ने आगम युग, उत्कर्ष युग और नवीन युग के आचार्यों के जीवन प्रसंगों को प्रकट किया। मुनि जयेशकुमारजी ने सांवत्सरिक प्रवचन क्रम का उपसंहार करते हुए तेरापंथ के 11 आचार्यों का संक्षिप्त जीवन वृत्त प्रस्तुत किया। इस अवसर पर हजारों उपवास के साथ सैकड़ों पौषध और अनेकों तपस्याएं हुई।