संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण
जैन साधना पद्धति में पर्युषण को आत्मचिंतन, आत्ममंथन और आत्मावलोकन का महापर्व माना गया है। जो व्यक्ति अपनी आत्मा के आसपास रहता है, त्याग तपस्या का संकल्प लेता है, स्वाध्याय, ध्यान, मौन, खाद्य संयम, सामायिक, जप आदि का प्रयोग करता है वह व्यक्ति आत्मा से परमात्मा, जन से जिन की दिशा में प्रस्थान करता है। यह उद्गार अणुविभा केंद्र में संवत्सरी महापर्व के अवसर पर आचार्यश्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी मंगलप्रभा जी ने धर्मसभा में व्यक्त किए। पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व के अंतर्गत 'जैन धर्म का सिंहावलोकन - संवत्सरी महापर्व' की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए साध्वीश्री ने कहा - जीवन को उजालों से भरने का दिन है, आय-व्यय का लेखा-जोखा करने का दिन है।
संवत्सरी महापर्व कहता है बाहर से भीतर की यात्रा करें। यह महान बनने का आह्वान करता है। यह पर्व ऋजुता और मृदुता का पर्व है। वर्ष भर में हुई भूलों, त्रुटियों को सुधारने तथा दूसरे के प्रति किए गए कठोर व्यवहार के लिए क्षमा के द्वारा मैत्री की धारा बहाने का समय है। कार्यक्रम का शुभारंभ नमस्कार महामंत्र, चौबीसी के संगान से हुआ। अध्यात्म के महासूर्य भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का वर्णन करते हुए साध्वीश्री ने कहा कि भगवान महावीर अध्यात्म जगत के महासूर्य थे। उनके तेजस्वी आभावलय ने सारे विश्व को अभिनव दिशा प्रदान की। वे त्यागवीर, तपोवीर, धर्मवीर और कर्मवीर थे।
साध्वी श्री द्वारा भगवान महावीर के जन्म से पूर्व माता को आए 14 स्वप्न, महावीर के द्वारा गर्भ में की गई प्रतिज्ञा, चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को भगवान महावीर का जन्म, जन्मोत्सव, दीक्षा महोत्सव आदि का रोचक वर्णन किया गया। इस प्रकार भगवान महावीर के 27 भव, चंदनबाला का व्याख्यान, संपूर्ण जैन संस्कृति, तीर्थंकर महावीर के पश्चात उत्तरवर्ती प्रभावक आचार्यों की स्वस्थ परंपरा तथा तेरापंथ धर्मसंघ के यशस्वी आचार्यों का जीवन चरित्र आदि जैन शास्त्रों एवं जैन इतिहास और परंपरा का वाचन साध्वी मंगलप्रभाजी, साध्वी सुमनकुमारी जी, साध्वी समप्रभाजी एवं साध्वी प्रणवप्रभा जी ने किया। साध्वी वृंद ने 'आयो जैन जगत रो प्रमुख पर्व संवत्सरी रे' सुमधुर गीत का संगान किया। साध्वी समप्रभा जी ने तपस्या का विवरण प्रस्तुत किया। प्रतीक लोढ़ा ने पर्युषण के भावों से ओत:प्रोत गीत का सुमधुर संगान किया। राजकुमार बरड़िया एवं पन्नालाल पुगलिया ने अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर श्रावक-श्राविकाओं द्वारा बड़ी संख्या में चौविहार उपवास, अष्ट प्रहरी, छः प्रहरी, चार प्रहरी पौषध किए गए। नमस्कार महामंत्र का अखंड जप सुचारू रूप से चला।
क्षमापना दिवस - साध्वीश्री के सान्निध्य में 'पवित्रता का प्रसाद - क्षमापना पर्व' के अवसर पर सामूहिक 'खमत खामणा' का कार्यक्रम आयोजित हुआ। नमस्कार महामंत्र से शुरू हुए कार्यक्रम में साध्वीश्री जी ने दिल की गांठें खोलकर एकदम हल्का और पवित्र होने की प्रेरणा देते हुए गुरुदेव आचार्यश्री महाश्रमण जी, साध्वी प्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी सहित चतुर्विध धर्म संघ से खमत खामणा की। इस अवसर पर साध्वीश्री ने बताया - पर्युषण महापर्व का प्राण है क्षमापना। संवत्सरी पर सारे जीवों से क्षमापना करनी है।
वास्तविक आराधना तभी होगी जब हमारे दिल में किसी के प्रति मनमुटाव नहीं रहेगा, क्लेश नहीं होगा, मन में वैर नहीं होगा। जब तक मन में किसी व्यक्ति के प्रति वैर की गांठ है, किसी के प्रति मन में द्वेष है, तब तक हमारा मोक्ष नहीं होगा। सच्चा धर्म तभी प्रकट होता है जब हृदय में क्षमापना का भाव प्रकट होता है। हमें उदार बनना है, क्षमाशील बनना है, सहनशील बनना है। क्षमा हमारा धर्म है। उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं ने आत्मालोचन और आत्म निरीक्षण कर चौरासी लाख जीव योनी से क्षमा याचना करते हुए समस्त साध्वी वृंद से एवं एक-दूसरे से शुद्ध अंतःकरण से क्षमा याचना की। श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा, तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ युवक परिषद्, अणुविभा केंद्र के पदाधिकारियों ने सभी से क्षमा याचना की।