क्षमा का विनिमय व्यक्ति को हल्का बना देता है
पर्युषण पर्व के नवान्हिक कार्यक्रम के अन्तर्गत भिक्षु समाधि स्थल परिसर में स्थित हेम अतिथि भवन में संवत्सरी महापर्व एवं क्षमापना पर्व का आयोजन हुआ। इस अवसर पर उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं एवं कर्मचारी गण को सम्बोधित करते हुए मुनि मणिलाल जी ने कहा- भारतीय संस्कृति में अध्यात्म का सर्वोपरि महत्त्व है।
क्षमापना के इस अवसर पर जिस किसी व्यक्ति के साथ कटुता पूर्ण व्यवहार हुआ हो उसके साथ सरल हृदय से क्षमायाचना करें तथा दूसरों को क्षमा प्रदान करें। क्योंकि क्षमा के धरातल पर ही धर्म का बीज वटवृक्ष का आश्रय स्थल बन सकता है। मुनि चैतन्य कुमार 'अमन' ने कहा सांवत्सरिक एवं क्षमा का पर्व जैन परम्परा में ही मनाया जाता है। क्षमा का विनिमय व्यक्ति को हल्का बना देता है। भार मुक्त बनना आत्मा का विशेष सद्गुण है।
पर्व की महत्ता इसी में है कि जिसके साथ हमारा मन-मुटाव अर्थात् वैर विरोध की गांठ बन्धी है उसे खोलकर मैत्री भाव स्थापित करें क्योंकि गांठ में रस नहीं होता चाहे वह गन्ने की हो अथवा मन की। अतः पर्व की सार्थकता है कि हम सरलता से इन गांठों को खोलने का प्रयास करें। मुनि धर्मेश कुमार जी ने घटना का उल्लेख करते हुए क्षमापर्व पर अपने उद्गार व्यक्त किए। मुनि गिरीश कुमार जी ने अपने विचार प्रस्तुत किए। आचार्य भिक्षु समाधि संस्थान से व्यवस्थापक महावीर सिंह ने विचार व्यक्त करते हुए सबसे खमत खामणा किए।
डॉ. बी.आर. शर्मा, अणुव्रत समिति सिरियारी से पत्रकार प्रकाश कुमार ने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का संचालन स्वस्विक जैन ने किया।