संथारा साधना है जीवन की उत्कृष्ट साधना

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संथारा साधना है जीवन की उत्कृष्ट साधना

रायपुर के टाटीबंध स्थित शांतिनाथ नगर प्रवासी संथारा साधिका शांति देवी बैद के संथारा अनुमोदना का विशेष आयोजन किया गया। मुनि सुधाकरजी ने कहा कि शांति देवी बैद ने संथारा स्वीकार किया है। अनशन व्रत जैन समाज की विशेष साधना है, जिसमें व्यक्ति आत्मा और शरीर की भिन्नता का अनुभव करता है।
एक अवस्था के बाद या किसी लंबी बीमारी या अत्यंत सच्ची भावना से और वैराग्य से थोड़ा सा पहले आत्मकल्याण के निमित्त व्यक्ति यह अनशन व्रत स्वीकार करता है। उन्होंने संथारा के महत्व को समझाते हुए कहा की संथारा और आत्महत्या में अंतर होता है। कई बार यह गलती होती है की संथारा और आत्महत्या को एक मान लिया जाता है। आत्महत्या आवेश में होती है जबकि संथारा तब होता है जब मन में संसार के प्रति ममत्व के विसर्जन की भावना जागृत होती है। मन में किसी प्रकार की इच्छा, लालसा नहीं होती है। कोई राग-द्वेष नहीं होता है। जब यह किसी जैन श्रावक को अनुभव हो जाता है कि यह शरीर पोषण के लायक नहीं है। उसे शरीर को अध्यात्म के मार्ग पर, त्याग और वैराग्य मार्ग पर प्रशस्त कर देना चाहिए। विशेष बात यह है साधना एक दिन में समाप्त नहीं होती है। संथारे से पूर्व संलेखना की जाती है। मुनिश्री ने बताया की आचार्य श्री महाश्रमण के आशीर्वाद से शांति देवी बैद ने 9 दिन पूर्व अन्य जल त्याग दिया है। 31 वर्षों से निरंतर एकांतर तप कर रहे हैं, साथ में वे करीब 50 वर्ष से रात्रि में चौविहार त्याग कर रहे हैं। इन्होंने अपने जीवन में नाना प्रकार की साधनाएं की हैं, तपस्या की है और निरंतर वर्षों से वह साधना तपस्या करते हुए आज इस चरम स्थिति में पहुंचे हैं। इनका शरीर ऐसा लगता है जैसे मात्र केवल हड्डियों का ढांचा बना है पर जैसे ही इन्हें
गुरुदेव के बारे में कुछ बताया जाता है, कुछ कहा जाता है, ऐसा लगता है जैसे कोई सोई शक्ति जाग जाती है। मुनिश्री ने संथारा साधिका को धर्माराधना कराई। श्रावक-श्राविकाओं की अच्छी सहभागिता रही।