अध्यात्म की साधना में अहंकार और ममकार होता है त्याज्य : आचार्यश्री महाश्रमण
ध्यानयोगी की सन्निधि में हुआ प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष का शुभारम्भ
आज से लगभग 49 वर्ष पूर्व सन् 1975 में जयपुर में गुरूदेव तुलसी और मुनि नथमल जी (आचार्य महाप्रज्ञ जी) की सन्निधि में प्रेक्षाध्यान पद्धति का विधिवत शुभारंभ हुआ था। आज ध्यानयोगी आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में आज 50वां वर्ष शुरू होने जा रहा है जो प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष के नाम से एक वर्ष तक मनाया जायेगा।
ध्यान साधना के महान आराधक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने फरमाया कि आयारो आगम में कहा गया है- अध्यात्म की साधना में शरीर के प्रति ममत्व छोड़ने की बात होती है। पदार्थों से भी ज्यादा ममत्व शायद अपने शरीर के प्रति हो सकता है। अध्यात्म की साधना में अहंकार और ममकार भी त्याज्य होता है। आज प्रेक्षाध्यान का कल्याण वर्ष का प्रारंभ हुआ है। लगभग एक वर्ष की कालावधि है। जयपुर सी-स्कीम के ग्रीन हाउस में आचार्यश्री तुलसी की सन्निधि में इस पद्धति का नामकरण हुआ था - प्रेक्षाध्यान। दुनिया में अनेक नामों से ध्यान पद्धतियां चल रही हैं। हमारे धर्मसंघ में मुनिश्री नथमलजी 'टमकोर' उस समय वरिष्ठ मुनि थे। वे इस प्रेक्षाध्यान में मुख्य योगदान देने वाले माने जा सकते हैं।
प्रेक्षाध्यान पद्धति मानो हमारे धर्म संघ का एक अवदान है। प्रेक्षाध्यान पद्धति से पहले भी हमारे यहां छोटा ध्यान, बड़ा ध्यान जो श्रीमद् जयाचार्य द्वारा प्रदत्त था वह चलता था। प्रेक्षाध्यान पद्धति शुरू होने के बाद लाड़नूं में अनेकों शिविर लगे थे। प्रेक्षा प्राध्यापक मुनिश्री किशनलालजी व मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी को गुरुदेव तुलसी ने अलंकरण प्रदान किया था। तुलसी अध्यात्म नीडम में व लाड़नूं के बाहर भी अनेकों शिविर चतुर्मासो में लगते तो आचार्यश्री महाप्रज्ञजी भी वहां विराज जाते थे, आचार्यश्री तुलसी भी पधारते, प्रवचन भी होता।
जैन विश्व भारती प्रेक्षाध्यान पद्धति से गहरा जुड़ा हुआ रहा है। दिल्ली में अध्यात्म साधना केन्द्र में भी शिविर लगते और विशिष्ट व्यक्तित्व भी पधारते थे। अहमदाबाद में प्रेक्षा विश्व भारती भी प्रेक्षाध्यान से जुड़ा संस्थान है। पिछले कई वर्षों से प्रेक्षा इंटर नेशनल संस्था उभरी, इसके माध्यम से विदेशियों के भी शिविर लगने लगे। प्रेक्षा वाहिनी भी कार्यरत है। प्रेक्षाध्यान पद्धति में भी अणुव्रत की तरह जैन-अजैन कोई भी जुड़ सकता है। इसका विस्तार देश-विदेश में हुआ है, अनेक कार्यकर्ता इससे जुड़े हुए हैं। वर्तमान टेक्नोलॉजी ने भी सुविधा भी प्रदान कर दी है। आज नेपाल के पूर्व राष्ट्रपति श्री रामबरन यादव भी इस कार्यक्रम में पहुंचे हैं।
अनेक प्रशिक्षक भी इससे जुड़े हैं। एस. के. जैन ने कितने ध्यान के शिविर लगाए थे, और भी विशिष्ट व्यक्ति इससे जुड़े हैं। समण श्रेणी का भी योगदान रहा है। इसकी स्थापना का पचासवां शुरू हो रहा है। सभी चारित्रात्माएं, समणियां व श्रावक समाज इसके प्रचार-प्रसार, प्रयोग करने का प्रयास करें। भाव क्रिया, प्रतिक्रिया विरति, मैत्री, मिताहार व मित भाषण ये पांच बातें जो प्रेक्षाध्यान से जुड़ी हैं वे हमारी जीवन शैली से जुड़ जाए। प्रेक्षाध्यान वर्ष अच्छे ढंग से चले, अच्छा कार्य हो, मंगल कामना। पूज्यवर ने उपस्थित जनता को ध्यान का प्रयोग करवाया, प्रेक्षाध्यान शिविरार्थियों को उपसंपदा स्वीकार करवाई।
साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने फरमाया कि जब हमारे पास सूर्य, चंद्रमा या शब्दों की ज्योति नहीं है तो हम भीतर की ज्योति से देख सकते हैं। भीतर की ज्योति प्रकट करने का एक उपाय है - ध्यान। ध्यान के समान और कोई दूसरा तीर्थ, तप या योग नहीं है। हम ध्यान को जीवन में स्थान दें। ध्यान के द्वारा व्यक्ति अंतर्मुखी बन सकता है। ध्यान चेतन मन की शक्तियों को सुला देता है और अवचेतन मन की शक्तियों को जगा देता है। ध्यान के द्वारा चेतना का रास्ता बदल जाता है। चेतना बाह्य पदार्थों से हटकर भीतर की ओर चली जाती है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नेपाल के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. रामबरन यादव ने कहा कि इस प्रेक्षाध्यान शिविर में आकर कुछ ज्ञान प्राप्त किया है। वर्तमान विश्व की स्थिति में हमें महापुरुषों की अपेक्षा होती है। हम भगवान महावीर की वाणी से विश्व की समस्याओं का उपचार ढूंढने का प्रयास करें। मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी का बार-बार स्वागत करने का अवसर मिला है। में उनके विचारों से प्रभावित हूं। ऐसी विभूति ही हमें सच्ची राह दिखा सकते हैं। प्रेक्षा इण्टरनेशनल के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमारश्रमणजी ने प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष के शुभारम्भ के संदर्भ में आचार्यश्री द्वारा प्रदान किए आशीर्वचनों का वाचन किया। साध्वी वृन्द ने प्रेक्षाध्यान गीत का सुमधुर संगान किया। सूरत चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष संजय सुराणा, अध्यात्म साधना केन्द्र के डायरेक्टर के. सी. जैन, प्रेक्षा इण्टरनेशनल के अध्यक्ष अरविंद संचेती, जैन विश्व भारती के अध्यक्ष अमरचंद लुंकड़ ने अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन मुनि कुमारश्रमणजी ने किया।