
सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र है परम सुख का मार्ग : आचार्य श्री महाश्रमण
अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आर्ष वाणी की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि आदमी में लोभ की वृत्ति होती है। तत्वज्ञान के अनुसार दशम गुणस्थान तक लोभ का अस्तित्व रहता है। क्रोध, मान, माया पहले ही समाप्त हो जाते हैं, लोभ सबसे बाद में जाने वाला तत्व है। साधारणतया आदमी लोभ के कारण माया कर सकता है, झूठ बोल सकता है और हिंसा जैसा कार्य भी कर लेता है। लोभ जनक है, पाप का बाप है। व्यक्ति अनेक प्रकार की कामनाएं पाल लेता है और उनकी पूर्ति के लिए पाप कार्य में उद्धत और संलग्न हो सकता है। जो व्यक्ति लोभ को छोड़ अलोभ बन जाये वह कितना निष्पाप, पापों से मुक्त बन जाता है। लोभ पर विजय पाने के लिए लोभ को संतोष से जीतें। किसी भावना को जीतना है, तो उसकी प्रतिपक्ष भावना का अभ्यास करो। गुस्से को जीतने के लिए उपशम की साधना करो, अहंकार को जीतने के लिए मार्दव की साधना करो, माया को जीतने के लिए ऋजुता की अनुप्रेक्षा का प्रयास करो।
लोभ से आदमी माया में चला जाता है, आत्मा को मलिन बना देता है। संतोष परम सुख होता है। एक चीज है सुविधा और दूसरी है शांति। पदार्थाें से सुविधा मिल सकती है पर शांति साधना से मिलती है। आत्म रमण करने वाला साधु जितना शांति में रह सकता है, उतना पदार्थों में आसक्ति रखने वाला, सुख-सुविधा में रचा पचा आदमी शांति को प्राप्त नहीं कर सकता। त्याग है, वहां शांति है। समता-निष्कांछा होती है, वहां शांति होती है। सम्यक दर्शन, ज्ञान और चारित्र यह मोक्ष का मार्ग है, दुःख से मुक्ति का, परम सुख का मार्ग है।
चातुर्मास में स्थिरता से साधना करने का समय होता है। पर्युषण में धर्माराधना का, तपस्या का क्रम चलता है। शास्त्रों के पठन-पाठन से भी अच्छा ज्ञान प्राप्त हो सकता है। लोभ, माया एक ऐसा जाल है, जिसमें आदमी खुद फंस जाता है और दूसरों को भी ठगने का प्रयास करता है। आदमी अणुव्रत के नियमों को स्वीकार करे, प्रेक्षाध्यान का प्रयोग करे तो मायाजाल से मुक्त हो सकता है। कामनाएं कम करने से आदमी परम सुख की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
जैन विश्व भारती द्वारा आचार्यश्री भारमलजी के जीवन पर चित्र कथा रूप प्रस्तुत पुस्तक पूज्यवर के समक्ष लोकार्पित की गई। प्रोफेसर धर्मचंद जैन ने अपनी पचासवीं कृति ‘भारतीय राजनीतिक व्यवस्था और राष्ट्रपति के दो भाग’ को पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित करते हुए अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत की सुमधुर प्रस्तुति दी। कच्छ-भुज से समागत झवेरी भाई, हितेश खांडोर ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। भुज मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति के अध्यक्ष कीर्ति भाई ने भी अपनी भावना रखी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।