सत्संगत से प्राप्त हो सकती है अच्छी खुराक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सत्संगत से प्राप्त हो सकती है अच्छी खुराक : आचार्यश्री महाश्रमण

महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जिनवाणी की अमृत देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि जैन शास्त्र में आचारंग-आयारो प्रथम अंग आगम है। इसमें कई छोटे-छोटे सूत्र हैं, जिनके माध्यम से मानो आध्यात्मिक संदेश प्रदान किये गये हैं। आर्षवाणी - प्राच्य वाणी के स्वाध्याय से कुछ जानकारियां, कुछ प्रेरणा प्राप्त हो सकती है। हमारे लिए इन आगम शास्त्रों का बहुत महत्व है। कहा गया है कि बाल, अविरत और अज्ञानी, हिंसा में प्रवृत्त रहने वाला व्यक्ति है, उसकी संगत करने से क्या फायदा ? हमारे जीवन में संगत का भी प्रभाव पड़ सकता है। साधुओं का दर्शन ही पुण्य है, साधु तो तीर्थ होते हैं। ऐसे साधु जो दयामूर्ति, समतामूर्ति, क्षमामूर्ति, त्याग और तपोमूर्ति हैं वे किसी को दुःख नहीं देते, अहिंसा का पालन करते हैं, ऐसे साधु का मुख दर्शन करने वाले का पाप झड़ता है, आत्मा निर्मल बनती है।
जो ज्ञानी गृहस्थ होते हैं, ऐसे गृहस्थों की संगति से अच्छी प्रेरणा, अच्छा ज्ञान प्राप्त हो सकता है। संगति मनुष्य से होती है तो साहित्य से भी संगति हो सकती है। सत्साहित्य के पढ़ने से दिमाग में अच्छी खुराक जाती है, अच्छी प्रेरणा मिलती है, आदमी के भाव शुद्ध बन सकते हैं। महापुरूषों का चित्र देखने से भी अच्छी प्रेरणा मिल सकती है। श्रोत्रेन्द्रिय और चक्षुरिन्द्रिय हमारे लिए बाह्य जगत के सम्पर्क के सक्षम साधन हैं। आदमी सुनकर और देखकर अच्छी बात को ग्रहण कर सकता है। अच्छे व्यक्तियों से सम्पर्क है तो अच्छे संस्कार आने की संभावना बन सकती है। गलत संगति से व्यक्ति गलत राह पर जा सकता है। तेरापंथ प्रोफेशनल फॉरम द्वारा पंचम प्रशासनिक अधिकारी सम्मेलन का आयोजन पूज्यवर की पावन सन्निधि में हुआ। इस संदर्भ में टी.पी.एफ. राष्ट्रीय अध्यक्ष हिम्मत माण्डोत, मुम्बई की इनकम टैक्स की ज्वाइंट कमिश्नर सारिका जैन, एडिशनल कलेक्टर सिद्धार्थ जैन, आई.आर.एस. अशोककुमार कोठारी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि जहां समूह होता है, वहां शासन-प्रशासन की आवश्यकता भी हो सकती है। लोकतांत्रिक प्रणाली में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं और चुनाव के माध्यम से मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति आते हैं। संस्थाओं का भी अपना विधान है। व्यवस्था प्रबन्धन की प्रणाली होती है। आज तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के तत्त्वावधान में ऐसे अधिवेशन का आयोजन हो रहा है। प्रशासनिक स्तर पर आना भी जीवन की एक सफलता है। कितना श्रम किया होगा, तब ऐसे क्षेत्र में आने का अवसर मिलता है। प्रशासन के क्षेत्र में अनेकांतवाद का उपयोग हो सकता है। प्रशासनिक जीवन में भी संयम और नशामुक्तता रहे, अहिंसा, नैतिकता व ईमानदारी हो तो प्रशासनिक क्षेत्र में धर्म को जोड़ा जा सकता है। ‘महाश्रमण जीवनगाथा’ की गायिका अंतिमा जैन व गायक सुनील डागा ने गीत को प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।