कामनाओं का होना है दुःख का कारण : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कामनाओं का होना है दुःख का कारण : आचार्यश्री महाश्रमण

पुरूषार्थ के पुरोधा आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि आदमी कामासक्त होता है, कामनाओं से ग्रस्त होता है, ऐसा आदमी वैर को बढ़ा लेता है। अपने आपको दुःखी बनाना, पाप कर्मों का बंधन करना भी स्वयं के प्रति वैर बढ़ा लेने की बात होती है। कामनाओं की पूर्ति होते ही आगे की कामना हो जाती है। यदि कामनाओं की पूर्ति नहीं होती तो आदमी के मन में आक्रोश भाव भी आ सकता है। किसी आदमी में सत्ता प्राप्ति की कामना, किसी को धन प्राप्ति की कामना, किसी को यश-ख्याति की कामना आदि-आदि अनेक प्रकार की कामनाएं पनपती रहती हैं। कामनाओं का होना ही दुःख का कारण होता है।
दुःख को कम करने के लिए आदमी कामनाओं को कम करे। पुरूषार्थ करे और सफलता नहीं मिले तो दुःखी भी नहीं होना चाहिये। पुरूषार्थ का फल मिलेगा ही यह अपने हाथ की बात नहीं है। अर्हत उपदेश - मार्गदर्शन दे सकते हैं, पर किसी को धर्म में जोड़ ही देंगे कहना कठिन है। पुरूषार्थ और निष्पत्ति में क्या तालमेल है, वह भी देखना होता है। थोड़े लाभ के लिए ज्यादा पुरूषार्थ नहीं करना चाहिये। जो कामना ग्रस्त है, वह अपना वैर बढ़ा लेता है। कामनाओं का अल्पीकरण करे और अच्छी आध्यात्मिक कामनाएं करें।
गृहस्थों के लिए कामनाएं अपेक्षित होती हैं पर कामनाओं का साध्य शुद्ध हो तो साधन भी शुद्ध हो। जहां अहिंसा और संयम है, वो साधन अपनी सीमा में शुद्ध साधन हो सकता है। भौतिक साध्य में भी अहिंसा और संयम पर ध्यान दिया जाये तो साधन शुद्धि को प्राप्त किया जा सकता है। आदमी भौतिक कामनाओं को कम करने, क्षीण करने का प्रयास करे। बहुश्रुत परिषद सदस्य मुनि उदितकुमारजी ने तेरापंथ दर्शन और तत्त्वज्ञान के संदर्भ में साध्य और साधन विषय पर में प्रस्तुति दी।
जैन विश्व भारती के वार्षिक अधिवेशन के सन्दर्भ में अध्यक्ष अमरचन्द लूंकड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्त करते हुए पिछले कार्यकाल में किये गये कार्यों की जानकारी दी। संस्था के मंत्री सलिल लोढ़ा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए मंत्री प्रतिवेदन व कामधेनू को पूज्यवर को समर्पित किया। जैन विश्व भारती के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कीर्तिकुमारजी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की।
पूज्यवर ने आशीर्वचन प्रदान कराते हुए फरमाया कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ से संबद्ध अनेक संस्थाएं हैं, उनमें से एक संस्था है - जैन विश्व भारती। इस संस्था का जन्म आचार्यश्री तुलसी के समय हुआ था। यह संस्था अपनी शताब्दी के उत्तर्राध में चल रही है। संस्था ने विकास किया है और विकास की ओर भी बढ़ रही है। जैन विश्व भारती तपोवन - आश्रम का सा रूप है। वहां योगक्षेम वर्ष का आयोजन हुआ था।
आचार्यश्री तुलसी ने जैन विश्व भारती को कामधेनु कहा था। शिक्षा, शोध, साधना, साहित्य आदि गतिविधियां खूब आगे बढ़ती रहें। इस संस्थान का होना तेरापंथ समाज के लिए तो मानो भाग्य की बात है। कार्यकर्ताओं का श्रम और शक्ति लग रही है। भाग्य की चिन्ता न करते हुए पुरूषार्थ अच्छा करते रहें। हमारा भी योगक्षेम वर्ष के सन्दर्भ में साधिक एक वर्ष तक वहां प्रवास निर्धारित है।साध्वी स्तुतिप्रभाजी ने सुमधुर गीत का संगान किया। सूरत के लगभग 28 स्कूल के विद्यार्थियों ने अणुव्रत गीत का संगान किया। पूज्यवर ने विद्यार्थियों को संस्कार युक्त शिक्षा प्रणाली की प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार ने किया।