संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

संस्थाएं

संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

मुनि देवेंद्र कुमार जी, तपोमूर्ति मुनि पृथ्वीराज जी आदि ठाणा चार के सान्निध्य में पर्युषण पर्व की आराधना की गई। खाद्य संयम दिवस के अवसर पर मुनि देवेंद्रकुमार जी ने अपने उद्बोधन में विशेष प्रेरणा प्रदान की। मुनि पृथ्वीराज जी ने बताया कि संयम सबसे बड़ा धर्म है। अगर व्यक्ति भोजन में संयम रखता है तो कई दृष्टियों से स्वास्थ्य अच्छा रह सकता है। स्वाध्याय दिवस के अवसर पर मुनि देवेंद्रकुमार जी ने कहा सम्यक दर्शन की प्राप्ति दुर्लभ है। जिसे सम्यक दर्शन की पहचान हो जाए वह जीव मोक्ष में जाने वाला बन जाता है। मुनि पृथ्वीराज जी ने कहा कि यदि आज के राजनेता, समाज नेता अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय करें तो देश की तस्वीर बदल सकती है। सामायिक दिवस के अवसर पर अभिनव सामायिक के अंतर्गत त्रिपदी वंदना, ध्यान, जप, स्वाध्याय आदि का अभ्यास करवाया। मुनि पृथ्वीराजजी ने कहा- सामायिक मोक्ष का सैंपल है। स्वयं को देखने का, भीतर की ओर जाने का मार्ग है सामायिक। वाणी संयम दिवस के अवसर पर मुनि देवेंद्र कुमार जी स्वामी ने भगवान महावीर के 27 भवों का वर्णन प्रारंभ किया। मुनि पृथ्वीराज जी ने कहा कि वाणी के आधार पर ही व्यक्तित्व अंकन किया जा सकता है। मुनि देवेंद्र कुमार जी ने भगवान महावीर के पूर्व भवों का वर्णन किया। मुनि पृथ्वीराज जी ने कहा कि अणुव्रत व्यक्तित्व निर्माण का कारखाना है। जप दिवस के अवसर पर मुनि देवेंद्र कुमार जी ने जप का प्रयोग करवाया और भगवान महावीर के आगे के भवों का वर्णन किया। मुनि पृथ्वीराजजी ने कहा कि मंत्र विविध शक्तियों का खजाना है। जब तक मंत्र और साधक का सूक्ष्म शरीर एक रूप नहीं हो जाता तब तक साधक सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। ध्यान दिवस के अवसर पर मुनि देवेंद्र कुमार जी ने प्रेक्षा गीत का संगान किया। मुनि पृथ्वीराज जी ने के कायोत्सर्ग, ध्यान व दीर्ध श्वास का प्रयोग करवाया।
संवत्सरी महापर्व के अवसर पर मुनि देवेंद्रकुमार जी ने भगवान महावीर के जन्म, बाल्यावस्था, दीक्षा, साधना काल में आए परिषहों का वर्णन किया। चंदनबाला के समग्र जीवन पर प्रकाश डाला तथा संवत्सरी के महत्व का उल्लेख किया। मुनि पृथ्वीराज जी ने कहा कि संवत्सरी महापर्व जीवन में परिवर्तन करने, वैर की गांठ खोलने का, हृदय परिवर्तन का पर्व है। संवत्सरी महापर्व आध्यात्मिक संस्कृति का एक अनूठा और अलौकिक पर्व है। मुनि आर्जवकुमार जी ने महापर्व का शुभारंभ करते हुए पर्युषण पर्व की व्याख्या की तथा तीसरे प्रत्येक बुद्ध नमि राजर्षि के दीक्षा के निमित्त बनी घटना का वर्णन किया। क्षमापना दिवस पर मुनि देवेंद्र कुमार जी ने कहा- क्षमा वीरों का आभूषण है। आज के दिन हम अपने भीतर झांक कर राग द्वेष की ग्रंथियों को खत्म करें, यह मैत्री दिवस का शुभ संदेश है। मुनि पृथ्वीराज जी ने कहा- क्षमा आभ्यतंर तप है। क्षमा करने से हमारे मन का भार घटता है और हम अभय हो जाते हैं।