संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

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संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रणजी की सुशिष्या साध्वी कनकरेखाजी ने तुलसी कल्याण केन्द्र के परिसर में अध्यात्म परिषद् को संबोधित करते हुए कहा कि संयम की आराधना का महापर्व है पर्युषण। यह पर्व धर्म का दीप प्रज्वलित करने की प्रेरणा लेकर आता है। जैन धर्म का यह महान पर्व संपूर्ण मानव जाति के लिए जागरण का संदेश लेकर आता है।
खाद्य संयम दिवस- कार्यक्रम का शुभारंभ कन्यामंडल के सुमधुर मंगलाचरण से हुआ। साध्वी कनकरेखाजी ने अपने वक्तव्य में कहा हित-मित-सात्विक आहार करने वाला ही शारिरिक, मानसिक ओर भावनात्मक स्तर पर स्वस्थता व प्रसन्नता का अनुभव करता है। साध्वी गुणप्रेक्षाजी ने विषय प्रस्तुति के साथ विचार रखे। कुशल संचालन अनमोल बाफना ने किया।
स्वाध्याय दिवस- साध्वी कनकरेखाजी ने उद्बोधन में कहा- स्वाध्याय एक महकता गुलशन है, जिसकी सौरभ से मन प्रसन्न होता है, विचारों की पवित्रता बढ़ती है। ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है। सम्यग ज्ञान की प्राप्ति के लिए आगम स्वाध्याय का विशेष महत्व बताया गया है। साध्वीश्री ने स्वाध्याय के महत्व को उजागर करते हुए ऐतिहासिक घटना प्रसंग सुनाएं। सुन्दरनगर की बहनों ने सुमधुर गीतिका का संगान किया व कुशल संचालन पूजा पुगलिया ने किया।
सामायिक दिवस- अभिनव सामायिक का अभिनव कार्यक्रम त्रिपदी वंदना के साथ प्रारंभ हुआ। साध्वी हेमंतप्रभाजी ने जप, ध्यान आदि चरण प्रयोग करवाए। स्वाध्याय प्रयोग के अन्तर्गत साध्वी कनकरेखाजी ने कहा- सामायिक का अर्थ है समता की साधना। वर्तमान में जिसकी अत्यंत आवश्यकता है। पाप की प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर प्रस्थान करने व तनावमुक्ति का साधन है सामायिक। इकबालगंज की अभिनव संगीत प्रस्तुति एवं गरिमा पटवा का कुशल संचालन हुआ।
वाणी संयम दिवस- महावीर स्तुति के साथ कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। साध्वीश्री ने अपने उद्बोधन में कहा- सामजिक संबंधों का आईना है - वाणी। मौन से आन्तरिक शक्तियों का जागरण होता है। हमारी वाणी ही हमारे व्यक्तित्व की पहचान है। साध्वी संवरविभाजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। युवकों एवं बहनों ने वाणी संयम दिवस पर सुमधुर संगान किया। संचालन स्नेहा धाड़ीवाल ने किया।
अणुव्रत चेतना दिवस- तीर्थंकर स्तुति के साथ वातावरण को मंगल बनाते हुए साध्वीश्री ने अध्यात्म परिषद को सम्बोधित करते हुए कहा- अणुव्रत के छोटे-छोटे संकल्पों से चरित्र के ग्राफ को ऊंचा उठाया जाता है। जिससे व्यक्ति के भीतर संयम, सादगी, सदाचार आदि सद्गुणों का प्रवेश होता है। गुरुदेव तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात कर मानव को मानवता की राह दिखाई। साध्वीश्री ने परिषद् को अणुवती बनने के लिए विशेष आह्वान किया। जैन कॉलोनी की युवती बहनों ने गीतिका का संगान किया। संचालन सरोज कोचर ने किया।
जप दिवस- पर्युषण कालीन अखंड जप की आराधना में भाई-बहनों का विशेष उत्साह बोल रहा था। कार्यक्रम के प्रथम चरण में प्रतिदिन भगवान ऋषभ और भगवान महावीर की भव परंपरा का रोचक वर्णन साध्वीश्री द्वारा किया गया। साध्वी श्री ने जप के प्रभाव से होने वाली रोमांचक घटनाओं का उल्लेख करते हुए जप के तीन प्रकार बताए- वाचिक, उपांशु व मानस। संचालन प्रिया श्यामसुखा ने किया। साध्वी हेमंतप्रभाजी ने जप विधि का महत्व बताया।
ध्यान दिवस- कार्यक्रम का शुभारंभ युवा टीम के सुमधुर मंगलाचरण से हुआ। साध्वीश्री ने कहा जिंदगी की भागदौड़ में टेंशन मुक्ति का सुंदर आयाम है- प्रेक्षाध्यान। गुरूदेव तुलसी व आचार्य महाप्रज्ञजी ने प्रेक्षाध्यान का अवदान देकर सम्पूर्ण मानव जाती को जीने की कला सिखाई।साध्वी हेमंतप्रभाजी ने ध्यान की चर्चा की। संचालन तेयुप मंत्री प्रतीक कोचर ने किया।
भगवती संवत्सरी महापर्व- पर्वाधिराज महापर्व संवत्सरी का कार्यक्रम उल्लास भरे वातावरण में सम्पन्न हुआ। महावीर सुतुति के साथ कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। साध्वी कनकरेखाजी ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह पर्व तप त्याग की नई प्रेरणा, नई उर्जा लेकर अध्यात्म चेतना को जागृत करने आया है। यह आत्मशुद्धि के साथ आत्मानंद की अनुभूति करवाता है। साध्वीश्री ने भगवान महावीर के साधनाकाल का रोचक वर्णन सुनाया।
इससे पूर्व साध्वी गुणप्रेक्षाजी ने अनाथी मुनि का आख्यान सुनाया। साध्वी संवरविभाजी व साध्वी हेमंतप्रभाजी ने 'इतिहास की अपूर्व धरोहर' गणधरवाद व प्रभावक आचार्यों के घटनाक्रम से अवगत कराया। तेरापंथ महिला मंडल ने तेरापंथ आचार्यों के स्वर्णिम इतिहास की अभिराम झलक प्रस्तुत की। श्रद्धा दुगड़ ने कुशल संचालन किया।
मैत्री पर्व - तप अनुमोदना 108 तेलों के साथ: मैत्री दिवस पर साध्वी कनकरेखाजी ने अध्यात्म परिषद को सम्बोधित करते हुए कहा- राग-द्वेष की ग्रंथि का भेदन कर सरल ह्रदय से हमें क्षमायाचना करने का शुभ संदेश लाया है- मैत्री पर्व। आज के दिन हम मैत्री, प्रेम व पारस्परिक व्यवहार कर क्षमा का आदान-प्रदान करें। इस महापर्व की आराधना में लुधियाना में पहली बार 108 तेले, दो पचंरगी तप, पर्युषण काल में सानंद सम्पन्न हुए। संवत्सरी के दिन सैंकडों उपवास के साथ करीब 151 पौषध व्रत की आराधना हुई। सभा, महिला मंडल व तेयुप पदाधिकरयों ने विचार व्यक्त किये।