संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

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संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

साध्वी संयमलता जी ने पर्युषण पर्व की महत्ता बताते हुए कहा- जिस प्रकार मंत्रों में नवकार महामंत्र, रत्नों में चिन्तामणि रत्न, रसायनों में अमृत रसायन, महिनों में भाद्रवा महिना सर्वश्रेष्ठ है, उसी प्रकार पर्वो में पर्युषण महापर्व सर्वश्रेष्ठ है। पर्युषण महापर्व त्याग व तप से, सामायिक व पौषध से आत्मा को संवारने का पर्व है।
खाद्य संयम दिवस - साध्वी संयमलताजी ने कहा- अति खाना हमारी सेन्चुरी को हाफ-सेन्चुरी बना देता है। साध्वी मार्दश्रीजी ने कहा भारतीय संस्कृति में जैन धर्म सर्वोत्कृष्ट धर्म है ,जो आज भी जीवंत है, प्रांसगिक है। कन्या मण्डल ने संयम एक्सप्रेस रूपी प्रस्तुति से पर्युषण में करणीय कार्यों को प्रस्तुत किया।
स्वाध्याय दिवस- साध्वी संयमलता जी ने भगवान महावीर के 27 भवों की यात्रा का वर्णन करते हुए जीवनयात्रा के प्रथम पड़ाव एवं सम्यक्त्व के बारे में चर्चा करते हुए स्वाध्याय की प्रेरणा दी। साध्वी मनीषाप्र‌भाजी ने दान, शील, तप एवं भावना के बारे में समझाया।
सामायिक दिवस- अभिनव सामायिक कराते हुए साध्वीश्री ने प्रेरणा दी कि वर्तमान जन-जीवन की दिनचर्या अनियमित है। लोग कहते हैं हम व्यस्त हैं, लेकिन वे व्यस्त नहीं अस्त-व्यस्त हैं। सामायिक हमारे मन व बुद्धि को विराम देने वाली है, विचारों की भीड़ से अलग करने वाली है। साध्वी श्री ने मरीचि के भव का वर्णन किया। साध्वी मार्दवश्रीजी ने कहा कि प्रकृति, पदार्थ व व्यक्तिगत जगत में समता रखने वाला सुख-समृद्धि को प्राप्त करता है।
वाणी संयम दिवस - वाणी हमारे व्यक्तित्व को दर्शाती है। वाणी sugar-free न होकर sugar-full होने से परिवार को स्वर्ग बना देती है। हित, मित, मधु वचन व्यक्ति को सफलता के शिखर पर पहुंचा देते हैं। साध्वी श्री ने भगवान महावीर के पूर्व भवों का वर्णन प्रस्तुत किया। साध्वी रौनकप्रभा जी ने भक्तामर की उपयोगिता को बताया। श्रावक-श्राविकाओं में मौन पचरंगी का आयोजन हुआ।
अणुव्रत चेतना दिवस - साध्वीश्री ने कहा- छोटे- छोटे व्रतों से जीवन सुखी व वैभवशाली बनता है। संयम हमें शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक सभी रोगों से मुक्त बनाता है। भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के प्रसंग में उनकी आत्मा के 16वें भव में किए गए निदान और वैर के अनुबंध को प्रस्तुत किया। साध्वी मनीषाप्रभाजी ने कहा- मूर्छा का त्याग ही परिग्रह का त्याग है व संयम के सोपान की प्रथम सीढ़ी है।
जप दिवस - मंत्र विविध शक्तियों का खजाना है। मनोयोगपूर्वक किया गया जप, शक्तियों को प्रकट करता है। मंत्र एक कवच है जो बाहरी शक्तियों को झेलने में समर्थ होता है।
ध्यान दिवस - साध्वी संयमलता जी ने कहा - ध्यान एक प्रकार का आहार है जो अन्तर को पुष्ट करता है। प्रत्येक कार्य करते समय उसी में एकाग्र हो जाना, तल्लीन हो जाना ही ध्यान है। ध्यान मन को निर्मल बनाता है, इसी निर्मलता से अतिमुक्तक, स्थूलिभद्र, मरुदेवा माता भवसागर से तर गए। महावीर के पूर्व भवों का वर्णन करते हुए तीर्थंकर ‌गोत्र का बन्धन करने वाले नन्दन के भव में किए गए 11,60,000 मासखमण के बारे में बताया। साध्वी मार्दवश्री ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा - ध्यान आत्मज्ञान पाने की कुंजी है। सभी तीर्थकर अपने साधना काल में ध्यान कर केवलज्ञानी बने।
भगवती संवत्सरी महापर्व - साध्वी संयमलताजी ने सैकडों उपवासी भाई-बहनों को सम्बोधित करते हुए कहा - आज बाहरी सौन्दर्य नहीं, भीतरी सौन्दर्य को देखने का पर्व है, स्वयं के भीतर पुरुषार्थ जगाने का पर्व है।