संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

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संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

साध्वी शकुन्तलाकुमारी जी के सान्निध्य में पर्युषण महापर्व का भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें सैंकड़ों श्रावक-श्राविकाओं ने पर्युषण कालीन आचार संहिता का पालन करने के लिए संकल्प किया। पर्युषण पर्व की महत्ता बताते हुए साध्वीश्री ने कहा- पर्युषण पर्व धर्म का प्रवेश द्वार, सिद्धि का राजपथ है। चेतना को जगाने वाला पर्व है। प्राणी मात्र के साथ मैत्री का संबंध जोड़ने वाला पर्व है। साध्वी संचितयशाजी ने कहा- पर्युषण पर्व में हर क्षण, हर पल जागरूक रहकर वीतराग वाणी का श्रवण कर अमृत रस का पान करना है। साध्वी रक्षितयशा जी ने खाद्य संयम दिवस पर चन्दन बाला के तेले के तप की प्रेरणा देते हुए कहा- पर्युषण में तप की गंगा बहाने का आह्वान किया। बाह्य आडम्बरों से हटकर भीतर की चेतना का दीप जलाने की प्रेरणा दी। साध्वी जागृतप्रभा जी ने 'आवो पर्युषण मनावां' गीत का संगान किया। स्वाध्याय दिवस पर प्रेरणा देते हुए साध्वीश्री ने कहा- स्वाध्याय तप है। जो व्यक्ति स्वाध्याय में तल्लीन रहता है, वह परम अलौकिक आनन्द को प्राप्त करता है। साध्वी संचितयशा जी ने भगवान महावीर के नयसार के भव के बारे में बताया। साध्वी जागृतप्रभाजी ने कहा स्वाध्याय से विरक्ति के भाव जागते हैं। साध्वी रक्षितयशाजी ने स्वाध्याय गीत का संगान किया।
तृतीय दिवस साध्वी शकुन्तला कुमारी जी के सान्निध्य में अभिनव सामायिक में सैकड़ों भाई-बहनों ने सामायिक की पचरंगी में अपनी सहभागिता निभाई। साध्वीश्री ने कहा- सामायिक बाहर से भीतरी जगत में प्रवेश करने का प्रमुख द्वार है। अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का राजमार्ग है। साध्वी रक्षितयशाजी ने सामायिक का प्रयोग करवाया। साध्वी जागृतप्रभाजी ने सामायिक गीत का संगान किया। साध्वी संचितयशा जी ने मरीचि के भव के बारे में विस्तार से बताया।
वाणी संयम दिवस पर साध्वी श्री ने कहा- कठोर वचन विष और मधुर वचन अमृत वर्षा के समान हैं। साध्वी जागृतप्रभा जी ने वाणी संयम पर कहा- विवेक पूर्ण, प्रिय, मधुर भाषा ही सुखद संसार को बसाती है। साध्वी रक्षितयशा जी ने गीत के संगान किया। साध्वी संचितयशा जी ने कहा- महापुरुष अंधकार को प्रकाशमय बनाने के लिए इस धरा पर जन्म लेते हैं। अणुव्रत चेतना दिवस पर साध्वी शकुन्तला कुमारीजी ने कहा- अणुव्रत जीवन का श्रृंगार है। अणुव्रत नैतिक जीवन जीने का शंखनाद करता है। साध्वी रक्षितयशा जी ने कहा- चरित्रनिष्ठ व्यक्ति ही स्वस्थ समाज, राष्ट्र का उत्थान कर सकता है। साध्वी जागृत प्रभा जी ने 'अणुव्रत जगा रहा है' गीत का संगान किया। साध्वी संचितयशा जी ने भगवान महावीर के जीवन दर्शन के बारे में विस्तार से विवेचन किया।
साध्वी शकुन्तलाकुमारी जी ने जप दिवस पर कहा - किसी भी मंत्र का जप किया जाए तो वह पतित को पावन बना देता है, वासना को उपासना में बदल देता है। साध्वी रक्षित यशाजी ने कहा- जप भीतरी स्नान है जिससे मन में स्फूर्ति आती है और कोलाहल शांत होता है। साध्वी जागृतप्रभाजी ने 'जप हर रोज करो' गीत का संगान किया। साध्वी संचितयशाजी ने भगवान महावीर के साधना काल के बारे में बताया। साध्वी शकुन्तलाकुमारी जी ने ध्यान दिवस पर कहा- ध्यान अन्तरात्मा में उतरने की कला है। ध्यान में बीता हमारा एक क्षण हमारे पूरे दिन को बदल सकता है, एक दिन पूरे जीवन को बदल सकता है। साध्वी रक्षितयशा जी ने कहा- आध्यात्मिक और दैवीय शक्तियों से जुडने के लिए ध्यान के अलावा और कोई मार्ग नहीं है। साध्वी जागृतप्रभाजी ने अनुप्रेक्षा का प्रयोग करवाया। साध्वी संचितयशा जी ने कहा - ध्यान से शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक व्याधियों का शमन होता है। भगवती संवत्सरी के अवसर पर विशाल जनमेदिनी को संबोधित करते हुए साध्वी शकुन्तला कुमारी जी ने संवत्सरी पर्व की महत्ता बताते हुए कहा- आज के दिन आत्मावलोकन कर मन की गांठों को खोलना है। साध्वीश्री द्वारा महासती चन्दनबाला के आख्यान का वाचन किया गया।
साध्वी संचितयशा जी ने कहा- प्रभु महावीर ने जीवन भर सत्य की साधना और अहिंसा की आराधना की। साध्वी जागृतप्रभा जी ने तीर्थकरों व विशिष्ट आचार्यों से परिचित करवाया। साध्वी रक्षितयशाजी ने उत्तराध्ययन का वाचन करते हुए मनुष्य जीवन की दुर्लभता के बारे में बताया, साथ ही गणधरवाद व तेरापंथ के आचार्यों का सजीव चित्रण किया। सैकड़ों, अष्टप्रहरी व चतुर्थ प्रहरी पौषध हुए। पर्युषण साधना शिविर में 31 भाई-बहिनों ने भाग लेकर विशिष्ट साधना की।
सामूहिक क्षमायाचाना के उपलक्ष में साध्वी शकुन्तला कुमारी जी ने कहा- पर्युषण महापर्व का हृदय स्थल है- खमत खामणा। वीर पुरुष दूसरों के अप्रिय कटुवचनों को विस्मृत कर उसके साथ मित्रता स्थापित कर लेता है। इसलिए आज के दिन सब प्रेम से मिल-जुलकर रहने का प्रयास करें। साध्वी संचितयशा जी ने कहा- क्षमा दिवस पर संकल्प करें कि हमें अपने जीवन के प्रांगण में मैत्री के कल्पवृक्ष को सिंचन देना है। साध्वी रक्षितयशा जी ने मधुर स्वर लहरियों में मैत्री गीत का संगान किया। साध्वी जागृतप्रभा जी ने कहा- भूल चुभन है, क्षमा सुमन है। आठ दिवस के इस पर्युषण महापर्व, भगवती संवत्सरी एवं क्षमा याचना में विलेपार्ले, अंधेरी, सांताक्रुज, बांद्रा, खार और जोगेश्वरी के युवक परिषद्, महिला मंडल एवं सभा से अलग-अलग दिवसों पर संचालन, मंगलाचरण एवं रात्रि कालीन कार्यक्रमों में रोचक प्रस्तुतियों के साथ सराहनीय सहभागिता रही।