संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

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संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

साध्वी मधुस्मिताजी ठाणा 3 के सान्निध्य में पर्युषण महापर्व बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। महापर्व का नवनीत आठवां दिन संवत्सरी एवं फल श्रुति क्षमापना दिवस बहुत ही आराधनामय रहा। प्रातः काल से ही श्रावक-श्राविकाओं का उल्लास के साथ आगमन शुरू हो गया था। भगवान महावीर के जन्म से लेकर निर्वाण तक की यात्रा एवं इस बीच हुए कष्टों की साध्वी प्रदीपप्रभा जी, साध्वी सहजयशा जी, वरिष्ठ उपासिका रजनी बाई दूगड़ ने प्रस्तुति दी। साध्वी मधुस्मिता जी ने संवत्सरी महापर्व के महत्व को समझाया एवं चंदनबाला के व्याख्यान की प्रभावी प्रस्तुति दी। आपने कहा पर्युषण का अर्थ है विभाव से स्वभाव में आना, बाहर से भीतर में आना। यह आत्मचिंतन का पर्व है। अंतर्मन से क्षमा देने वाला आराधक बन जाता है। दूसरों की भूलों को भूलना एवं स्वयं की भूलों को याद रखकर क्षमा मांगना इस महापर्व की सार्थकता है। साध्वी मधुस्मिता जी ने तेरापंथ धर्म संघ की आचार्य परंपरा एवं साध्वी प्रमुखाओं के बारे में अपनी विशिष्ट शैली में विस्तृत विवेचन किया।
साध्वी सहजयशा जी ने जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों की विस्तृत जानकारी दी। श्राविका रजनी देवी दुगड़ ने भगवान महावीर के जीवन काल के अंतिम वर्षों का सुन्दर वर्णन किया। अच्छी संख्या में आठ, छः एवं चार प्रहरी पौषध हुए। आठ एवं उससे ज्यादा की तपस्या करने वाले 21 तपस्वियों ने प्रत्याख्यान किया।