सम्यक् पुरुषार्थ से लक्षित मंजिल प्राप्त कर सकते हैं : आचार्यश्री महाश्रमण
चीकली, 30 मई, 2021
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ आज प्रात: विहार कर चीकली ग्राम पधारे। आत्म-साक्षात्कार के प्रेरक पूज्यप्रवर ने फरमाया कि हमारे पास पाँच ज्ञानेंद्रियाँ हैं। पाँच कर्मेंद्रियाँ भी अलग बताई गई हैं। ज्ञानेंद्रियाँ पाँच हैंश्रोत, चक्षु, घ्राण, रसन और स्पर्शन। इन पाँच इंद्रियों के माध्यम से हमें विषयों का ज्ञान होता है। विषयों का ग्रहण होता है।
इंद्रिय, विजय और व्यापार-प्रवृत्ति तीन चीजें हैं। ज्ञानेंद्रियों के द्वारा विषय का ग्रहण होना है और फिर उनका बोध हो जाता है। ज्ञानेंद्रियों द्वारा भोग भी होता है। ज्ञान है, तो भोग भी हो सकता है। दो शब्द हैंकाम और भोग। जब काम और भोग का साथ में प्रयोग करें तो इंद्रियों के संदर्भ में श्रोतेंद्रिय और चक्षुरिन्द्रिय से काम होता है। घ्राणेन्द्रिय, रसनेंद्रिय और स्पर्शनेंद्रिय से भोग होता है।
तत्त्वज्ञान में बताया गया है कि ये पाँच इंद्रियाँ हैं, इनमें दो इंद्रियाँ तो कामी हैं, और तीन इंद्रियाँ भोगी हैं। कान में शब्द पड़ता है, हमने सुन लिया। चक्षु से दूर से रूप को देख लिया, पर रूप आँख में गिरता नहीं है तो स्पर्श-भोग नहीं हुआ काम हो गया। गंध है, वो नाक के अंदर जाती है, हमें अनुभव होता है। खाना अंदर जाता है तो हमें अनुभव हो जाता है, वो भोग हो गया। त्वचा स्पर्श से भी भोग हो जाता है।
हमारी ये पाँच ज्ञानेंद्रियाँ हैं, जो ज्ञान का माध्यम है, इन पाँचों इंद्रियों में दो इंद्रियाँ ज्ञान का ज्यादा माध्यम बनती है। वे हैंश्रोतेंद्रिय और चक्षुरिन्द्रिय। श्रोत से हम सुनते हैं, कितनी बातों का ज्ञान हो जाता है। आँख से देखने से भी कितनी बातों की जानकारी हो जाती है। कान से सुना फिर उसको आँख से देख लिया तो बात की जानकारी बहुत प्रामाणिक और पुष्ट हो सकती है।
कानों से सुनने से कानों को तृप्ति मिल गई, पर साक्षात् दर्शन करने से और अधिक तृप्ति हो जाती है। बात पुष्ट हो जाती है। आदमी सुनकर कल्याण को जानता है और सुनकर पाप को भी जान लेता है। सुनने-जानने के बाद श्रेय है, हितकर है, कल्याणकारी है, वो आचरण करना चाहिए।
दो शब्द हैंएक है प्रेय, दूसरा श्रेय। एक चीज प्रिय हो सकती है, पर वो श्रेय हो, जरूरी नहीं है। कोई हितकर है, वो प्रिय हो जरूरी नहीं है। कोई प्रिय और हितकर दोनों हो सकती है। कोई अप्रिय होती है, न हितकर है। शास्त्रकार ने कहा है, जो हितकर-अच्छी चीज है, उसका आचरण करो।
कानों से सुनकर जो हितकर है, उसे आचरण में लाएँ। जो हितकर नहीं है उसे छोड़ें। तीन शब्द हैंज्ञान, हान, उपादान। जान लेना ज्ञान है। हान बुरे को छोड़ देना और उपादान अच्छे को ग्रहण कर लेना।
संतो-गुरुओं की वाणी को सुनना जो अच्छी बातें बताते हैं। सुनना भी अच्छा है, जीवन में उसे कितना उतारेंगे वो अलग बात है। एक कदम तो आगे बढ़ गया। कदम उठेंगे तो दूरी कम होगी। थोड़ा लाभ तो अच्छी बात सुनने से हो गया। सुनने से आज नहीं तो कल मन में आ जाए कि ये बात मुझे जीवन में उतारनी चाहिए। श्रवण के बाद मनन करें।
सुन लो, मनन कर लो फिर जीवन में उतार लो तो बहुत ही अच्छी बात हो जाए। शास्त्रकार ने सुनने की बात बताई कि सुनने से ज्ञान होता है, हम ज्ञान होने के बाद जो श्रेय है, उसका हमें आचरण करना चाहिए।
श्रावक बारह व्रतों में एक हैइच्छा परिमाण। दूसरा भोग उपभोग परिमाण। इच्छाओं का परिसीमन करो, परिग्रह का परिमाण करो। भोगोपभोग का जीवन की शैली में पदार्थों का संयम करो। सुनकर उनको जाना, फिर जीवन में उतार लिया। कदम-कदम आगे बढ़ सकते हैं।
सैकड़ों योजन एक चींटी जा सकती है। गति है, तो मंजिल भी मिलेगी। तीव्र गति वाला गरुड़ अगर न चले तो कहीं नहीं पहुँच सकता। उज्जैन में शिक्षात्मक वाक्य थाधीरे-धीरे चलोगे तो महाकाल पहुँच जाओगे, तेज चलोगे तो हरिद्वार पहुँच जाओगे। गति के साथ सुरक्षा भी हो। जागरूक रहो, बहुत तेज मत चलो। गति धीमी भले हो, पर गति में अवरोध न हो। सम्यक् पुरुषार्थ करें तो कुछ प्राप्त कर सकते हैं।