आचार्यश्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में हुआ बारह व्रत दीक्षा सम्मेलन का आयोजन
परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् द्वारा बारह व्रत दीक्षा सम्मेलन का आयोजन सूरत में किया गया। आचार्य प्रवर ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि साधुओं के पाँच महाव्रत होते हैं, जिसकी वो पालना करते हैं। उसी प्रकार श्रावकों के लिए भी छोटे-छोटे नियम होते हैं जिनका वो पालन कर सकते हैं। पूज्यप्रवर ने श्रावक के बारह व्रतों की विस्तृत व्याख्या करने के पश्चात फरमाया कि उसकी पालना हो उसके लिए उसका ध्यान रखें और बराबर उसको याद करें। बारह व्रत की पुस्तक पढ़ते रहें ताकि अपने स्वीकृत संकल्पों का पालन अच्छे ढंग से हो सके। श्रावक त्याग की चेतना, संयम में रहे, मोह आसक्ति का त्याग करने का प्रयास करे। जितना हल्कापन आएगा आसक्ति छूटेगी और अनासक्ति बढ़ेगी, चेतना की निर्मलता बढ़ेगी, चेतना निर्मल होगी तो आगे सुगति भी प्राप्त हो सकेगी। त्याग और नियम आदमी लेता है तो अच्छे ढंग से उनका पालन भी करे। एक-एक नियम भी बहुत कल्याणकारी हो सकता है। आत्मा के लिए तो कल्याणकारी है ही, व्यवहार के लिए भी कल्याणकारी हो सकता है।
अभातेयुप के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि योगेश कुमार जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि भगवान महावीर ने बारह व्रत का जो अवदान प्रदान किया वह यूनिवर्सल अवदान है। क्योंकि महावीर जब प्रवचन करते थे तो वे किसी समुदाय विशेष के लिए नहीं सर्वजन हिताय के लिये करते थे। उन्होंने बारह व्रत को वैश्विक समस्याओं से जोड़कर बताया कि विश्व के न जाने कितने-कितने राष्ट्र, उनके प्रतिनिधि गण कितने-कितने सेमिनार करते हैं, कितनी कॉन्फ़्रेंस करते हैं कि वैश्विक समस्याओं का समाधान कैसे हो? यदि हम बारहव्रत और वैश्विक समस्याओं का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं तो ऐसा लगता है कि भगवान महावीर ने दूरगामी चिंतन से बारह व्रत का महत्वपूर्ण अवदान दिया है। आचार्य श्री तुलसी की वाणी थी कि बारह व्रत यूनिवर्सल विचार है, जिसके प्रति जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। अभातेयुप के 60वें स्थापना दिवस पर मुनिश्री ने कहा कि अभातेयुप की यह यात्रा हमें विराम या विश्राम नहीं बल्कि उत्साहित करती है कि हमें और द्रुतगति से बढ़ना है। सम्मेलन की शुरुआत में मुनि दिनेश कुमार जी ने कहा कि आज अभातेयुप का स्थापना दिवस व साथ में बारह व्रत दीक्षा सम्मेलन है। यह अच्छी बात है कि कार्यक्रम की शुरुआत धर्म के साथ हो रही है। मुनिश्री ने आगे कहा कि बारहवर्ती श्रावक बनने से अच्छी भावना, अच्छी लेश्या व शुभ परिणाम जीवन में आते हैं। पहले संस्था शिरोमणि महासभा इस उपक्रम को चलाती थी, अब इन वर्षों में अभातेयुप इस उपक्रम को चला रही है। जगह-जगह बारहव्रत कार्यशालाएँ भी आयोजित होती हैं। मोहनीय कर्म का हल्कापन होता है, तभी बारह व्रती बन सकते हैं। अभातेयुप राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेश डागा ने अभातेयुप एवं बारहव्रत सम्मलेन के संबंध में जानकारी प्रेषित की। राष्ट्रीय प्रभारी रोहित दुगड़ ने भी अपने भाव व्यक्त किए।