भाव विशुद्धि व आत्मशुद्धि तपस्या का लक्ष्य होना चाहिए
अभिनन्दन किसी व्यक्ति का नहीं, वरन त्याग-तपस्या का होता है। तप एक संजीवनी बूटी है। तपस्या के प्रभाव से शरीर व मन दोनों स्वस्थ बन जाते हैं, गुरु कृपा का बल, आत्मबल, तप के प्रति श्रद्धा बल से व्यक्ति तपस्या के क्षेत्र में सफल हो जाता है। भाव विशुद्धि व आत्मशुद्धि हेतु तपस्या करना तपस्या का सही लक्ष्य होना चाहिए। उक्त आशय के उद्गार साध्वी उर्मिलाकुमारीजी ने तेरापंथी सभा द्वारा आयोजित तप अभिनंदन समारोह मे तेरापंथ भवन में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं के समक्ष व्यक्त किए।
साध्वी मृदुलयशाजी ने कहा कि तपस्या व्यक्ति के विकास की दिशाएं खोलता है। अनेकानेक साधु-साध्वियों व श्रावक-श्राविकाओं ने तपस्या कर इस धर्मसंघ की नींव को मजबूत बनाया है। आपने धर्मसंघ के महातपस्वियों व दीर्घ तपस्विनी साध्वी पन्नाजी की तपस्याओं के बारे मे विस्तार से बतलाया। चतुर्मासकाल में पूजा मेहता ने मासखमण, विमलादेवी वोरा ने धर्मचक्र तप एवं अनेकों तपस्वियों ने विभिन्न प्रकार की तपस्या कर कर्म निर्जरा की। तप अनुमोदना मे साध्वीवृंद ने सामूहिक गीत को प्रस्तुति दी। मुक्ता मूणत, तेरापंथी सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुनील भांगु, कन्यामंडल संयोजिका ने तप अनुमोदना में अपने भावों को अभिव्यक्ति दी। चतुर्मास में विभिन्न तपस्या करने वाले श्रावक-श्राविकाओं को तेरापंथी सभा द्वारा सम्मानित किया गया। कार्यक्रम संचालन तेरापंथी सभा के सहमंत्री पंकज पटवा ने किया।