शक्ति से करें स्व-पर कल्याण : आचार्यश्री महाश्रमण
आश्विन नवरात्र के प्रथम दिवस तीर्थंकर प्रतिनिधि शक्तिस्रोत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आर्ष वाणी के उच्चारण के साथ आध्यात्मिक अनुष्ठान करवाया। मंगला देशना देते हुए, महाशक्ति के पुरोधा ने कहा- आयारो आगम में कहा गया है कि जीवन में कभी-कभी दुखद समय आते हैं। प्रिय का वियोग, अपमान, बदनामी या शारीरिक तकलीफ से मन दुखी हो सकता है। साथ ही उत्सव या अनुकूल परिस्थितियाँ जैसे खुशी के पल भी आते हैं। जीवन में सुख-दु:ख आते रहते हैं। साधु को विशेष रूप से समता की साधना करनी चाहिए। आज से नवरात्रि का अनुष्ठान शुरू हुआ है। इस समय, दिन-रात की लंबाई लगभग बराबर होती है। हमारे यहां गुरुदेव तुलसी की विद्यमानता में, सन् 1994 में दिल्ली में अनुष्ठान का यह क्रम शुरू हुआ था जो आज भी जारी है। जीवन में शक्ति का बहुत महत्व है। शक्ति से हम अपना और दूसरों का कल्याण कर सकते हैं।
आत्मा में अनंत शक्ति होती है। शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। सज्जन व्यक्ति का बल दूसरों का कल्याण करता है। अहंकार नहीं करना चाहिए। नवरात्र के समय में आदमी को शक्ति की आराधना करने का प्रयास किया जाना चाहिए। शक्ति और शांति दोनों को जीवन में साथ लेकर चलना चाहिए। साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने उवसग्गहर स्तोत्र का विवेचन करते हुए कहा कि सम्यकत्व रूपी रत्न प्राप्त करने वाला अजरामर हो जाता है। पूज्यवर ने उपस्थित जनता को प्रेक्षाध्यान का प्रयोग करवाया। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के तीसरे दिन, वीर नर्मद दक्षिण गुजरात युनिवर्सिटी के वाईस चांसलर किशोर सिंह चावड़ा ने अपनी भावना व्यक्त की।
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अणुव्रत प्रेरणा दिवस के अवसर पर पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत का कार्य आगे बढ़ाया था। अणुव्रत का मंतव्य है कि आदमी अपनी-अपनी धर्म-परंपरा में रहते हुए भी अणुव्रत के नियमों का पालन कर गुड मैन बनने का प्रयास कर सकता है। पूजा जैन (टोहाना) ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।