अहिंसा, सत्य और संयम से जीवन में होता है मंगल : आचार्यश्री महाश्रमण
अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के तत्वाधान में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का हुआ शुभारंभ
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में 01 अक्टूबर से 07 अक्टूबर तक अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के तत्वाधान में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का शुभारंभ हुआ। आज के कार्यक्रम में हरिधाम सोखड़ा योगी डिवाइन सोसाइटी के अध्यक्ष स्वामी गुरुहरि प्रेमस्वरूप जी और स्वामी त्यागवल्लभ जी की सम्माननीय उपस्थिति रही। साम्प्रदायिक सौहार्द दिवस कार्यक्रम की शुरुआत अणुव्रत गीत से की गई।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा कि शास्त्रों में कई कल्याणकारी वाणियां हैं, जिन्हें जीवन में अपनाने से आत्मा का उद्धार हो सकता है। सबसे बड़ा मंगल धर्म है। तेरापंथ धर्म संघ के 256 वर्षों के इतिहास में दस आचार्य हुए हैं, जिनमें आचार्य श्री तुलसी ने धर्म को व्यापक रूप में प्रस्तुत किया। जैन हो या अजैन, सभी को अच्छी बातों और नियमों को स्वीकार करना चाहिए। कुछ नियम सभी सम्प्रदायों में मिल सकते हैं। जैसे गुड़ खाने से मुंह मीठा होता है, वैसे ही अहिंसा, सत्य और संयम के पालन से जीवन में मंगल होता है।
उपासना की पद्धतियां अलग हो सकती हैं, परंतु अहिंसा, सत्य और संयम में समानता हो सकती है। धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति चाहे जैन हो या अजैन, उसका कल्याण सुनिश्चित होता है। आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का प्रारंभ हो रहा है, जिसमें अनेक अजैन भी जुड़े हुए हैं। अणुव्रत को बाजार, चौराहों, विद्यालयों और जेल में बंद कैदियों के बीच भी ले जाया जाए, ताकि उनका जीवन भी अच्छा बन सके। ये छोटे-छोटे नियम जैसे मैं नशा नहीं करूंगा, मैं निरपराध की हत्या नहीं करूंगा, ईमानदार रहूंगा, पर्यावरण की रक्षा करूंगा आदि-आदि नियम आदमी के जीवन में आते हैं तो जीवन अच्छा बन सकता है। अणुव्रत उद्धोधन सप्ताह का प्रथम दिन सांप्रदायिक सौहार्द दिवस है तो आज दो संप्रदायों का मिलन हो रहा है।
स्वामी त्यागवल्लभजी ने स्वामी प्रेमस्वरूपजी के संदेश का वाचन करते हुए कहा कि आचार्य श्री महाश्रमणजी जैसे संतों का दर्शन भाग्य से मिलता है। इनके प्रवास से हर कार्य सिद्ध हो जाते हैं। स्वामीजी ने आचार्य प्रवर से राजकोट स्थित उनके परिसर में पधारने का निवेदन भी किया। कार्यक्रम में अणुव्रत समिति सूरत के अध्यक्ष विमल लोढ़ा, अणुविभा के उपाध्यक्ष राजेश सुराणा और विनोद बांठिया ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी। चतुर्दशी के संदर्भ में आचार्यश्री ने हाजरी का वाचन किया। तदुपरान्त समस्त चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।