कार्य, व्यवहार, भाषा और विचार में रहे अहिंसा का प्रभाव : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कार्य, व्यवहार, भाषा और विचार में रहे अहिंसा का प्रभाव : आचार्यश्री महाश्रमण

अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस, महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री का जन्म दिवस, साथ ही अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का दूसरा दिन अहिंसा दिवस के रूप में मनाया गया। अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए कहा कि आगम में कहा गया है- अनासक्त साधक शब्द और स्पर्श को सहन करता है। सहिष्णुता एक गुण और साधना होती है। जब मन या शरीर की विपरीत स्थिति आती है, तब उसे समभाव से सहन करना एक उत्कृष्ट साधना है। कई बार ऐसे शब्द सुनने को मिलते हैं जो कटु होते हैं या अपमानजनक होते हैं। साधुओं को भी अपमानजनक शब्द सुनने पड़ सकते हैं, लेकिन उनका धर्म है कि वे उसे सहन करें।
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत अहिंसा दिवस के उपलक्ष में पूज्य प्रवर ने फरमाया कि हमारे कार्यों, व्यवहार, भाषा और विचारों में अहिंसा का प्रभाव बना रहे। यह सप्ताह अणुव्रत के प्रचार-प्रसार के लिए भी महत्वपूर्ण है। अहिंसा को भगवती, माता और जीवनदायिनी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। महात्मा गांधी ने जब विदेश यात्रा की थी, तब उन्होंने तीन संकल्प लिए थे, जो अणुव्रत के नियमों से मिलते-जुलते थे। शौर्य, वीर्य और बलवती अहिंसा को कामना योग्य बताया गया है।
पूज्यवर द्वारा प्रेक्षाध्यान का प्रयोग करवाने के पश्चात 'शासन गौरव' साध्वी कल्पलताजी द्वारा संपादित एवं जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'शासनमाता सादर स्मरण—भाग 2' पूज्यवर को लोकार्पित की गई। मुनि उदितकुमारजी ने नवरात्र में होने वाले आयंबिल महानुष्ठान की जानकारी प्रदान की। अहिंसा दिवस पर छोटे-छोटे बच्चों ने भी प्रस्तुति दी। मुंबई से स्थानकवासी संघ के ट्रस्टी मुकेश भाई ने भी अपनी भावनाएं व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।