आचार्य भिक्षु के 222वें चरमोत्सव पर विविध कार्यक्रम

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आचार्य भिक्षु के 222वें चरमोत्सव पर विविध कार्यक्रम

स्थानीय तेरापंथ भवन में साध्वी स्वर्णरेखाजी के सान्निध्य में 222वां भिक्षु चरमोत्सव मनाया गया। साध्वीश्री ने अपने प्रवचन में कहा कि आचार्य भिक्षु अनेकों संघर्षों को झेलते हुए खुद कंटीली राहों पर चले, शुरुआती 5 वर्ष तक उन्हें रोटी पानी भी सही तरीके से नहीं मिल पाया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। जिसके फलस्वरुप आज हम इतने सुंदर, सुरम्य, नंदनवन जैसे भैक्षव शासन में धर्माराधना कर रहे हैं। एक सूर्य वह है जो अस्त होने के बाद अंधकार फैलाता है लेकिन आचार्य भिक्षु एक ऐसे महासूर्य थे जिनके महाप्रयाण के बाद भी विश्व उनके आचार, विचार और मर्यादा से तेरापंथ धर्मसंघ के आलोक में प्रकाशित हो रहा है। आचार्य श्री भिक्षु में श्रुत, शील और बुद्धि की संपन्नता के साथ आचार संपन्नता भी थी। आज हम सभी उनके गुणों को याद करते हुए तेरापंथ धर्मसंघ की प्रभावना में सहयोग करते रहें और धर्म संघ को नई ऊंचाइयां देते हुए आगे बढ़ाते रहें। चरमोत्सव के उपलक्ष्य में 13 श्रावक-श्राविकाओं के द्वारा भिक्षु स्वामी की अभ्यर्थना में गीतिकाओं के द्वारा अपने श्रद्धा भाव समर्पित किए। रात्रिकालीन कार्यक्रम में धम्मजागरण का कार्यक्रम रखा गया, जिसमें युवक-युवतियों एवं बच्चों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने उपवास, एकासन तथा अन्य प्रत्याख्यान के द्वारा इस दिवस को मनाया। तेरापंथ भवन में जप अनुष्ठान का जिसमें काफी संख्या में महिला मंडल, कन्या मंडल, ज्ञानशाला के बच्चों आदि ने अपनी सहभागिता दर्ज करवाई।