संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा द्वारा प्रेक्षा विहार में युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के शिष्य मुनि जिनेशकुमार जी ठाणा-3 के सान्निध्य में पर्युषण पर्व का आयोजन हुआ।
1. खाद्य संयम दिवस : मुनि श्री जिनेशकुमार जी ने पर्युषण को आत्म निरीक्षण और आत्मगुणों के संचय का पर्व बताया। उन्होंने संयमित आहार और तेला तप की महत्ता पर जोर दिया। मुनि परमानंद जी ने इसे आध्यात्मिक विकास का पर्व कहा। तेरापंथ महिला मंडल और मुनि कुणालकुमार जी ने पर्युषण गीत प्रस्तुत किया। हार्दिक दुगड़ ने 23 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।
2. स्वाध्याय दिवस : मुनि श्री ने स्वाध्याय को आत्मा का अध्ययन और साधना का मुख्य अंग बताया। मुनि श्री ने भगवान महावीर की भव परंपरा के तीसरे भव मरीचि की व्याख्या करते हुए कहा अहंकार पतन की निशानी है। उन्होंने अहंकार के पतन और विनम्रता पर बल दिया। मुनि परमानंद जी और मुनि कुणालकुमार जी ने स्वाध्याय के लाभ पर चर्चा की। तेरापंथ महिला मंडल ने गीत प्रस्तुत किया।
3. सामायिक दिवस : मुनि श्री ने सामायिक के महत्व को उजागर करते हुए सामायिक करने की प्रेरणा प्रदान की। मुनिश्री के सान्निध्य में विभिन्न परिषदों ने अभिनव सामायिक का आयोजन किया।
4. वाणी संयम दिवस : मुनि श्री ने वाणी संयम के महत्व पर जोर दिया, जिससे विवाद कम होते हैं और ऊर्जा का संचय होता है। मुनि परमानंद जी ने वाणी को सकारात्मक और रचनात्मक बनाने पर बल दिया। मुनि कुणालकुमार जी ने गीत प्रस्तुत किया।
5. अणुव्रत चेतना दिवस : मुनि श्री ने अणुव्रत को नैतिकता और चरित्र शुद्धि का आधार बताते हुए स्वस्थ समाज की संरचना का संदेश दिया। मुनि परमानंद जी ने अणुव्रत को दुर्गुणों का स्पीड ब्रेकर कहा। मुनि कुणालकुमार जी ने अणुव्रत गीत प्रस्तुत किया।
6. जप दिवस : नमस्कार महामंत्र के सवा लाख जप अनुष्ठान में 1400 लोगों ने भाग लिया। मुनि श्री ने मंत्र जप को चंचल मन को स्थिर करने वाला बताया। मुनि परमानंद जी ने इसे प्रभु स्मरण का पर्व कहा। मुनि कुणालकुमार जी ने प्रेरणादायक गीत प्रस्तुत किया।
7. ध्यान दिवस : मुनि श्री ने आत्म शुद्धि के लिए स्वाध्याय और ध्यान को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा- प्रेक्षा ध्यान से आंतरिक शांति और संतोष प्राप्त होता है। मुनि परमानंद जी ने पौषध व्रत की प्रेरणा दी। मुनि कुणालकुमार जी ने प्रेक्षा ध्यान पर गीत प्रस्तुत किया।
8. संवत्सरी महापर्व : मुनि श्री ने इसे विश्व मैत्री और आत्मावलोकन का पर्व बताया, जो दिलों को जोड़ने और क्षमा देने का प्रतीक है। मुनि परमानंद जी ने इसे आत्मपरिष्कार और संस्कारों के प्रति आस्था का पर्व कहा। मुनि कुणालकुमार जी ने संवत्सरी गीत प्रस्तुत किया।
9. क्षमापना दिवस : सामूहिक खमतखामणा के अवसर पर मुनि जिनेशकुमार जी ने क्षमा को प्रेम और विश्वास का प्रतीक बताया। मुनिश्री ने कहा कि क्षमा दिव्य दृष्टि है, पारसमणि और आभ्यन्तर तप है। यह शोधन की प्रक्रिया है, सत्य आदि सभी गुणों की जननी है। खमतखामणा से मानसिक प्रसन्नता, वीतरागता, परिवार में सौहार्दपूर्ण वातावरण, शांति की प्राप्ति, कर्मो की विपुल निर्जरा, चित्त की प्रसन्नता, सकारात्मक भावों व सद्गुणों का विकास होता है। मुनि परमानंद जी और मुनि कुणाल कुमार जी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ कन्या मंडल ने मैत्री गीत प्रस्तुत किया और बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
विकास परिषद के सदस्य बनेचंद मालू ने उपस्थित धर्मसभा का आचार्य प्रवर व मुनिवृन्दों से सामूहिक खमतखामण करवाया। महासभा के महामंत्री विनोद बैद, कलकत्ता सभा के मंत्री उम्मेद नाहटा, साउथ हावड़ा सभा के अध्यक्ष लक्ष्मीपत बाफणा, मुख्य न्यासी संजय नाहटा, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष गगनदीप बैद तेरापंथ महिला मंडल की सहमंत्री खुशबू दुगड़, टी.पी.एफ. की अध्यक्षा खुश्बु कोठारी, अणुव्रत समिति हावड़ा के अध्यक्ष दीपक नखत ने अपने विचार व्यक्त करते हुए खमतखामणा किया। कार्यक्रम का संचालन सभा मंत्री बसंत पटावरी ने किया।