मोक्ष के लिए पुण्य कर्मों का त्याग भी है आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण
नवरात्र का अंतिम दिवस। महातपस्वी शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने नवान्हिक आध्यात्मिक अनुष्ठान के प्रातः कालीन अंतिम सत्र का सम्पन्न करवाया। मोक्ष मार्ग के पथदर्शक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फ़रमाया- 'आयारो आगम' में बताया गया है कि प्राणी के दुःख का कारण कर्म है। आश्रव से कर्मों का अर्जन होता है, और अशुभ कर्म दुःख का कारण बन सकते हैं। आश्रव से दोनों प्रकार के कर्म- शुभ और अशुभ - अर्जित होते हैं। आश्रव के पांच मूल भेद बताए गए हैं, जिनमें से साढ़े चार प्रकार के आश्रव पाप कर्म उत्पन्न करते हैं। आधे आश्रव से पुण्य कर्म का बंध होता है। शुभ योग से पुण्य का बंधन हो सकता है, जबकि मिथ्यात्व, प्रमाद, अव्रत, कषाय और अशुभ योग से पाप कर्मों का बंध होता है। आश्रव को पानी के नाले के समान कहा गया है। पुण्य भी अंततः छोड़ने योग्य होता है, क्योंकि आत्मिक सुख निर्जरा से मिलता है।
आयारों में कहा गया है कि दुःख का कारण कर्म हैं, इसलिए कर्म का परिज्ञान करो और पाप कर्म के बंधन से बचने का प्रयास करो। आठ कर्मों में ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अंतराय कर्म एकांतिक रूप से पाप कर्म होते हैं। वेदनीय, नाम, आयुष्य, और गोत्र कर्म शुभ और अशुभ दोनों हो सकते हैं। इस प्रकार, 75% कर्म पाप से जुड़े होते हैं, जबकि 25% कर्म पुण्य के होते हैं। हालांकि, मोक्ष पाने के लिए पुण्य कर्मों का भी त्याग आवश्यक है। कर्मों के अलग-अलग फल होते हैं। उनके हल्केपन से विकास हो सकता है, जबकि उनके उदय से विकास रुक सकता है। कर्मों के बंधन के भिन्न-भिन्न कारण हो सकते हैं, इसलिए मन में अनुकंपा, दया और करुणा का भाव रखना चाहिए। सम्यक दृष्टि रखने वाले व्यक्ति को केवल वैमानिक देवगति का बंध हो सकता है। तीर्थंकर नाम गोत्र का बंध होने पर तीसरे जन्म में वह तीर्थंकर बनेगा। यह सब कर्मों का ही खेल है, इसलिए हमें पाप कर्म से बचने का प्रयास करना चाहिए।
साध्वीवर्या श्री संबुद्धयशाजी ने कहा कि सम्यकत्व के बिना मोक्ष संभव नहीं है। सम्यकत्व रूपी बीज को समझना आवश्यक है। जिस जीव को एक बार सम्यकत्व का स्पर्श हो जाता है, वह संसार के परिताप से मुक्त हो जाता है। उसके जन्म-मरण और संसार-भ्रमण की सीमा तय हो जाती है। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के तत्वावधान में आज 8वीं कॉर्पोरेट कॉन्फ्रेंस का आयोजन पूज्यवर की सन्निधि में हुआ। मंचीय कार्यक्रम में ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। पूज्यवर ने आशीर्वचन प्रदान किए।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा आठवीं राष्ट्रीय कॉर्पोरेट कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। इस संदर्भ में टीपीएफ फेमिना टीम ने मंगलाचरण किया। टीपीएफ-सूरत के अध्यक्ष कैलाश झाबक ने अपने विचार व्यक्त किये। आचार्यप्रवर ने इस संदर्भ में पावन पाथेय प्रदान किया। इस कार्यक्रम का संचालन तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के महामंत्री मनीष कोठारी ने किया। प्रेक्षा मरोठी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। सज्जन पारख, सरिता सेखानी, हर्षलता दुधोड़िया, ज्योति व सुनीता सुराणा ने गीत का संगान किया। कुमारपाल देसाई द्वारा लिखित पुस्तक ‘कुमारपाल देसाई अभिवादन ग्रन्थ’ पुस्तक आचार्यश्री के समक्ष गुर्जर प्रकाशन की ओर से लोकार्पित की गई। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में अपनी भावाभिव्यक्ति दी।