शांतिपूर्ण ज़िन्दगी का आधार है बारह व्रत
साध्वी संयमलताजी के सान्निध्य में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के निर्देशन में तेरापंथ युवक परिषद् मण्डिया द्वारा बारह व्रत कार्यशाला का आयोजन किया गया। नवकार महामंत्र के साथ कार्यक्रम की शुरुवात हुई। मंगलाचरण महिला मंडल की बहनों ने किया। साध्वी संयमलता जी ने कहा - एक महत्वपूर्ण शब्द है - संयम। संयम मन की एकाग्रता, चंचलता को कम करता है। संयम पूर्वक जीवन जीने वाले के लिए नया सूरज उगेगा, नए जीवन की शुरुआत होगी। प्राणी गुलाम है - स्वाद का, गर्मी में AC का, महंगे कपड़ों का, मंहगे फोन का। यदि उसे मालिक बनना है तो संयम करना होगा। सड़कों पर स्पीडब्रेकर होता है जिससे दुर्घटना से बचाव हो जाता है। संयम व व्रत भी ब्रेकर हैं जिससे जीवन का रेजिस्टेंस पावर मजबूत होता है। साध्वीश्री ने आगे कहा- जो व्यक्ति नियंत्रण करना नहीं जानता, इच्छा का निग्रह करना नहीं जानता, जो इच्छा आती है उसे भोग लेता है, वह शरीर से भी बीमार बन जाता है। व्रत हमारी संकल्प शक्ति को मजबूत बनाता है। कोई भी क्षेत्र हो, चाहे व्यापार हो, राजनीति हो, या सामाजिक हो, वही व्यक्ति सफल होता है जिसका संकल्प मजबूत होता है।
साध्वी मार्दवश्रीजी ने कहा - भारतीय संस्कृति अध्यात्म प्रधान, धर्म प्रधान एवं त्याग प्रधान संस्कृति है। कहा जाता है - इच्छाएं आकाश के समान अनन्त हैं। आकांक्षा दुःख की जननी है। जीवन की आवश्यकताओं में And की जगह End सीमा लगाएं। 12 व्रत हमारे जीवन की इच्छाओं को एक लिमिट में लाता है, जिससे व्यक्ति खुशहाल एवं शांतिपूर्ण जिन्दगी जीता है। मुख्य वक्ता उपासक प्राध्यापक निर्मल नौलखा ने कहा कि सम्यक्त्व अनुपम सुख का भण्डार है, जन्म-मरण की परम्परा को तोड़ने वाला एक सशक्त शस्त्र है। मंजिल प्राप्त करना, हर यात्री का स्वप्न होता है। इसी प्रकार मोक्ष प्राप्त करना भी हर जीव का लक्ष्य होता है। मोक्ष रूपी लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिए प्रथम मिथ्या दृष्टि गुणस्थान से जीव को बाहर निकलना पड़ता है। व्रत पर चर्चा करते हुए उपासक नौलखा ने श्रावक-श्राविकाओं को इसकी महत्ता एवं लाभ बताए। सभी को बारह व्रत समझकर भरवाए एवं त्याग कराए। दो सत्रों में कार्यशाला सम्पन्न हुई, जिसमें श्रावक-श्राविकाओं युवक परिषद् सदस्यों की अच्छी उपस्थिति रही। आभार ज्ञापन तेरापंथ युवक परिषद् अध्यक्ष कमलेश गोखरू ने किया।