तुलसी देवदार हो
कार्तिक शुक्ला द्वितीया दिवस है रम्याकार,
बाजे घुंघरू की झंकार हो sss
तुलसी देवदार हो sss
चन्द्रमा सी उज्जवल आभा लगती मोहनगार,
स्वर्ग धरा पर हर्ष अपार हो sss
तुलसी देवदार हो sss ।।
वदना झूमर के अंगज नयन सितारे,
चंदेरी के तेजस्वी भाल हार हियारे।
प्रज्ञा का गहन समंदर श्रुतधर वे मनहार,
चम्पक लाड भ्रात सुखकार हो sss ।।
कालू कर कमलों दीक्षित बन गए मालोमाल,
वत्सलता के शैल शिखर लब्धिधर वाणी विशाल।
बाईस वर्षों में गुरुवर गण के दीदार,
कीर्तिपुरुष शक्ति भण्डार हो sss ।।
चिंता नहीं चिंतन करो सूत्र दिया मनभावन,
सरस्वती के वरदपुत्र का श्रम सिंचन है गण वन।
आगम के संपादन से खूब किया विस्तार,
बहती कल-कल आगम धार हो sss ।।
अणुव्रत का शंखनाद कर चरण बने गतिमान,
प्रेक्षा के दर्पण से विश्व को दिया वरदान।
समण श्रेणी को पहुंचाया सात समंदर पार,
पा. शि. पर उपकार हो sss ।।
संकल्प पुरुष का सुमिरण भरता है नव पुलकन,
उत्सव श्रेयस्कर आया चरणों में है वंदन।
आशीर्वाद दिराओ भगवन जग के तारणहार,
मन वांछित इच्छित दातार हो sss ।।
लय : रुड़ा रंगीला