करने आना होगा फिर से, वीर प्रभु तुमको साक्षात
भौतिकता के कोलाहल में, आध्यात्मिकता का जयनाद।
करने आना होगा फिर से, वीर प्रभु तुमको साक्षात।।
जटिल बने हैं शब्द, शब्द से जटिल-जटिलतम अर्थ स्वरूप,
इसीलिए ही लुप्त हो रहा, संबंधों का अपना रूप।
समझ सके शब्दों की भाषा, ऐसा सरल-सरल अनुवाद,
करने आना होगा फिर से, वीर प्रभु तुमको साक्षात।।
पथ अजाना, लोग अजाने, अपनी खुद की भी पहचान नहीं है,
भटक रहा मन गलियों-गलियों, मंजिल का भी भान नहीं है।
बीहड़ जंगल लगे भयंकर, पुनः उसे करने आबाद,
करने आना होगा फिर से, वीर प्रभु तुमको साक्षात।।
संयम तप के बीज उप्र हैं, सदियों से ही भारत भू पर,
किन्तु आज नहीं मिलता उनको, सम्यक् विधि से सिंचन जी भर।
लहराये संयम की फसलें, ऐसी अनुपम पौष्टिक खाद,
करने आना होगा फिर से, वीर प्रभु तुमको साक्षात।।
मना रहे निर्वाण दिवस हम, रैली, नारे और प्रचार,
नहीं सोचते उतरे कितने, जीवन में वे दिव्य विचार।
महावीर बन कैसे जीएं, भोले भक्तों से संवाद,
करने आना होगा फिर से, वीर प्रभु तुमको साक्षात।।