कर्मों की निर्जरा का सूत्र देता है जैन धर्म

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कर्मों की निर्जरा का सूत्र देता है जैन धर्म

इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ जैन फोरम एवं धर्म प्रभावना समिति द्वारा मोहता भवन में आयोजित कार्यक्रम में मुनि प्रमाणसागर जी, अभिग्रही राजेश मुनि, साध्वी रचनाश्री जी का संयुक्त सारगर्भित उद्बोधन हुआ। इस अवसर पर आचार्य श्री महाश्रमणजी जी की सुशिष्या साध्वी रचनाश्री जी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जैन धर्म एक आदर्श एवं महान धर्म है। हमारी आराधना एवं साधना के सूत्र हैं - देव, गुरु, धर्म। जैन धर्म आग्रह प्रधान धर्म नहीं है। जैन धर्म मैत्री का संदेश देता है। आत्मशुद्धि के लिए भूलों कों भूले। भूल हो भी जाएं तो उसे नहीं वरन् क्षमा के सूत्र को पकड़ें। तपस्वियों के अभिनंदन के अवसर पर साध्वीश्री ने कहा कि जैन धर्म कर्मों की निर्जरा का सूत्र देता है, इसी को शिरोधार्य करते हुए अनुराधा धर्मपत्नी अनिल पुगलिया की आज़ 85 उपवास की तपस्या है एवं आपने 108 उपवास करने का संकल्प लिया हुआ है।
सूरत में महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी के सान्निध्य में संभवतः 150 मासखमण एवं लगभग अठारह सौ अठाई की तपस्या हुई है। सभी धर्माचार्यों के सान्निध्य में तपस्या के अंकों का अंकन करें तो तपस्या का पेराग्राफ असंख्य हो सकता है। इस अवसर पर मुनि प्रमाण सागर जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि जो तप को धारण करता है उसका जीवन स्वयं अलंकृत हो जाता है एवं ऐसे तपस्वियों का अभिनंदन करने वाला भी अलंकृत हो जाता है। तप की अनुमोदना धर्म की अनुमोदना है। जीवन में धर्म, धर्मी, धर्मोपासना, पंथ यह चार पड़ाव है। धर्म की आराधना हमारे जीवन की साधना है। पंथ एक नहीं हो सकते, सबकी अपनी श्रद्धा, आस्था एवं मान्यता है। सभी को आपस में जुड़ने एवं जोड़ने की जरूरत है। इस अवसर पर अभिग्रही राजेश मुनि जी ने तप की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए धर्म सभा को संबोधित किया। कांतिलाल बंब ने इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ जैन फोरम की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का सफल संचालन राजेश चौरड़िया द्वारा किया गया।