बदलें सोच, बदलेंगे सितारे
मुनि सुधाकर जी के सान्निध्य में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, रायपुर द्वारा विशेष कार्यशाला 'बदलें सोच, बदलेंगे सितारे' का आयोजन किया गया। उपस्थित जनमेदिनी को संबोधित करते हुए मुनि सुधाकर जी ने कहा कि हमारे मन की मनोदशा दो तरह की होती है। एक मन कहता है यह कार्य कर लेता हूं और दूसरा यह कार्य नहीं करुं। विचार या सोच की उत्पत्ति मन से होती है। हम तीन योग मन, वचन और काया से जीते हैं। जैसा मन होगा, वैसा वचन होगा और इनका असर हमारी काया पर पड़ता है। मुनिश्री ने आगे कहा कि विज्ञान भी कहता है हमारे मन का प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर पड़ता है। मन की कल्पना से हम राई की बात को पहाड़ बना लेते हैं। हमारे मन में तीन तरह के वायरस भय, निराशा और ईर्ष्या विशेष रूप से कार्य करते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप तनावग्रस्त या अवसादग्रस्त हो कर हम नकारात्मक विचार की ओर अग्रसर हो जाते हैं और अव्यवहारिक कार्य कर गुजरते हैं।
मुनिश्री ने कुछ उदाहरणों के माध्यम से मार्गदर्शन देते हुए कहा कि भय से ग्रस्त व्यक्ति अपने आंतरिक आंतकवाद से घिरा रहता है, जिसके परिणाम स्वरुप उसका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है। अपने पर विश्वास कर, हम अपने आत्मविश्वास को जागृत कर, भय को दूर कर सकते हैं। हमें हमेशा आशावादी रहना चाहिए क्योंकि आशा हमारे जीवन की किरण, आधार, पतवार है। धार्मिक व्यक्ति वह होता है जो दु:ख में सुख और अंधेरे में उजाला खोज ले। मुनिश्री ने आगे कहा कि ईर्ष्या व्यक्ति के दु:ख का बहुत बड़ा कारण है। ईष्या पैदा होने का विशेष कारण दूसरों से अपनी तुलना है। जो है उसी में यदि हम सुख खोज लेंगे तो हमारा व परिवार का जीवन स्वर्ग बन जायेगा। मुनि नरेश कुमार जी ने सुमधुर गीतिका का संगान करते हुए विचार व्यक्त किए।