भौतिक सुखों को छोड़े बिना ध्यान साधना असंभव

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भौतिक सुखों को छोड़े बिना ध्यान साधना असंभव

युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण द्वारा घोषित प्रेक्षा कल्याण वर्ष के अन्तर्गत भिक्षु समाधि स्थल संस्थान, सिरियारी में अष्ट दिवसीय प्रेक्षाध्यान शिविर का आयोजन मुनि मणिलालजी के सान्निध्य एवं मुनि धर्मेशकुमारजी के मार्गदर्शन में आयोजित किया गया। शिविर के उद्घाटन में प्रेक्षागीत का संगान किया गया। मुनि मणिलालजी ने उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा- प्रेक्षाध्यान स्वयं के द्वारा स्वयं को देखने की प्रक्रिया है। वैसे तो हर क्रिया के साथ ध्यान को जोड़ना चाहिए किन्तु यह तब संभव है जब व्यक्ति भौतिक सुखों का आकर्षण छोड़ने का प्रयास करेगा। अहंकार और ममकार से मुक्त रहकर ही व्यक्ति ध्यान में प्रवेश कर सकेगा। अतः व्यक्ति इस शिविर के माध्यम से ध्यान के द्वारा स्वयं को स्वयं से जोड़ने का प्रयास करें।
मुनि धर्मेशकुमारजी ने शिविर की महत्ता को प्रकट करते हुए कहा- प्रत्येक शिविरार्थी प्रत्येक क्रिया के साथ भाव क्रिया करने का प्रयास करे। प्रतिक्रिया विरति, मैत्रीभाव, मितभाषण के साथ स्वयं को जोड़ने के साथ ध्यान के प्रयोग करें। स्वयं को बदलने की प्रक्रिया का नाम है- प्रेक्षाध्यान। अतः इस दिशा में स्वयं को अग्रसर करें तथा ध्यान को साथ जोड़कर आगे बढ़े। मुनि चैतन्यकुमार जी 'अमन' ने अपने संबोधन में कहा प्रत्येक व्यक्ति शान्ति और आनंद का जीवन जीना चाहता है। उसके लिए आवश्यक है- वितैषणा, लोकैषणा और पुत्रैषणा जैसी भावना से मुक्त रहकर आत्मतत्व की दिशा में अग्रसर हो। कामनाओं को छोड़े बिना आत्मशान्ति को पाना संभव नहीं। प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों से कामनाओं से मुक्त बना जा सकता है। प्रेक्षाध्यान गीत के संगान से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। इस अवसर पर संस्थान के उपाध्यक्ष उत्तमचंद सुखलेचा ने शिविरार्थियों का स्वागत किया। प्रेक्षा प्रशिक्षक मिश्रीमल जैन, प्रशिक्षिका रणजीता जैन, स्वास्तिक जैन ने विचार प्रकट किए। विकास बरड़िया ने आभार प्रकट किया।