आत्मा को राग द्वेष मुक्त कर वीतराग बनने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आत्मा को राग द्वेष मुक्त कर वीतराग बनने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

महामनीषी पूज्य आचार्य प्रवर ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे शास्त्र, जो जैन श्वेताम्बर परंपरा के हैं, उन्हें आगम कहा जाता है। हमारे यहां 32 आगम मान्यता प्राप्त हैं। संप्रदायों में आचार, विचार, मर्यादा, वेशभूषा में थोड़े-बहुत अंतर हो सकते हैं, पर अहिंसा का भाव बना रहना चाहिए। सभी संप्रदायों में सद्भावना और मैत्री भाव रहना चाहिए। जो सार है, वही हमारा है। यदि कहीं से अच्छी बात मिले, तो उसे ग्रहण करने की बुद्धि होनी चाहिए। अच्छी बातों का अनुमोदन करना चाहिए। शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श- ये पांच विषय हमारे पास हैं, जिन्हें हम इंद्रियों के माध्यम से ग्रहण करते हैं। पांच इंद्रियां, पांच विषय, और पांच व्यापार हो जाते हैं। इन इंद्रियों से हम ज्ञान प्राप्त करते हैं। राग-द्वेष करना हमारी विकृति है। हमें प्रकृति में रहते हुए संयम रखना चाहिए। जो चीज ग्रहण करने योग्य है, उसे ग्रहण कर लें, जो नहीं है, उससे दृष्टि हटा लें।
इन पांच विषयों को सुनकर जो राग-द्वेष नहीं करता, वह ज्ञानवान है। मुनि पृथ्वी के समान समता भाव से सहन करता है, गुस्सा नहीं करता। कोई शरीर का नाश कर सकता है, पर आत्मा को नहीं मार सकता। जैन साधु पांच महाव्रतधारी होते हैं, और रात्रि भोजन का भी त्याग करते हैं। वे अहिंसा का सजगता से पालन करते हैं। जैन साधु मधुकर की तरह भिक्षा ग्रहण करते हैं और गृहस्थों के घरों से जो सहज उपलब्ध हो, उसे थोड़ा-थोड़ा ग्रहण करते हैं। हिंसा भी न हो और संयम भी हो जाए। आज दो धाराओं का सम्मिलन हो रहा है। स्वामीनारायण संप्रदाय से हमारा संपर्क वर्षों से है। आत्मा को राग-द्वेष मुक्त करके वीतराग बने और मोक्ष प्राप्त करें। हम धर्म-अध्यात्म की साधना करते हुए जितना हो सके जनता का कल्याण करें। स्वामीनारायण संप्रदाय के संत नारायण मुनिदासजी ने कहा कि आज हमें बहुत आनंद हो रहा है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की भी स्मृति हो रही है। हमारे संतों में गोचरी की भावना थी। संतों के समागम से हमारा जन्म सुफल हो जाता है। संतों के समागम से तप-जप के गुण आते हैं। हमारा सभी के प्रति क्षमा का भाव रहे। आचार्यश्री महाश्रमणजी जो बताते हैं, वे स्वयं उसका आचरण करते हैं। किसी के प्रति बैर भावना न हो। आपके दिए ज्ञान को हम ग्रहण कर जीवन को सफल बनाएं। संत मुनि वन्दनदास जी ने अपने विचार अभिव्यक्त किए। प्रमुख स्वामी महंत के शुभेच्छा पत्र का वाचन जिग्नेश नरोला ने किया। 30 लाख से अधिक पेड़ लगाने वाले डॉ. राधाकृष्ण देव ने अपनी भावनाएं व्यक्त की। जैन विश्व भारती की ओर से मंत्री सलिल लोढ़ा ने जय तुलसी विद्या पुरस्कार की जानकारी दी। वर्ष 2024 का पुरस्कार भगवान महावीर विश्वविद्यालय, सूरत को प्रदान किया गया। इस सन्दर्भ में संजय जैन ने अपनी भावना व्यक्त की। विजय सेठिया ने चौथमल कन्हैयालाल सेठिया चैरिटेबल ट्रस्ट की जानकारी प्रस्तुत की। पूज्य प्रवर के बाव प्रवास के सन्दर्भ में क्षेत्र की ओर से लोगो का अनावरण किया गया। तेरापंथ महिला मण्डल-छापर ने गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।