वीतरागता की दिशा में आगे बढ़ने का माध्यम बन सकता है प्रेक्षाध्यान : आचार्यश्री महाश्रमण
वीतराग कल्प आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगमवाणी की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि पाश का विमोचन करो, पाश से मुक्त हो जाओ। पाश का अर्थ है बंधन। अगर कोई व्यक्ति जाल में फंसा हो और निकल आए, तो वह बंधन से मुक्त हो जाता है। माया के जाल रूपी पाश से निकल जाना चाहिए। स्नेह पाश अत्यधिक भयंकर होते हैं। राग आदि के कारण व्यक्ति बंधन में फंस जाता है। अवांछनीय राग भी एक पाश है, जो साधना के मार्ग में बाधा उत्पन्न करता है। पदार्थों के प्रति राग साधना के क्षेत्र में छोड़ने योग्य होता है। ममता, स्नेह और मोह बंधन हैं, जिन्हें कम करना आवश्यक है। प्रेक्षाध्यान का अभ्यास वीतरागता की दिशा में आगे बढ़ने का एक माध्यम बन सकता है, जिसमें न कोई प्रियता होती है, न ही अप्रियता। वीतराग बनने पर मोह समाप्त हो जाता है। भगवान महावीर केवलज्ञानी बन गए तो उनके मन में गौतम स्वामी के प्रति भी मोह नहीं रहा। गौतम स्वामी के मन में मोह आ गया था, लेकिन वे संभले और उन्हें भी कैवल्य की प्राप्ति हो गई। राग-द्वेष बंधन होते हैं, और अनित्य अनुप्रेक्षा के माध्यम से इनसे मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया - आयारो में कहा है कि व्यक्ति प्रेमानुबंध से मुक्त हो। दसवें गुणस्थान तक राग और मोह रहते हैं, लेकिन इसके बाद वीतरागता आती है। मुमुक्षु जीवन में संयम के प्रति निष्ठा, अपने नियमों के प्रति जागरूकता और स्वाध्याय का भाव होना चाहिए। ध्यान साधना में प्रवृत्त रहना और समिति-गुप्ति का अभ्यास करना चाहिए। जहां राग है वहां द्वेष भी होता है। द्वेष की पृष्ठभूमि में राग ही होता है। यदि राग न रहे तो द्वेष टिक ही नहीं सकता। इसलिए आदमी को ऐसे पाशों का विमोचन करने का प्रयास करना चाहिए। राग-राग में भी बड़ा अंतर होता है। गुरु के प्रति भक्ति रूपी राग और पदार्थों के प्रति राग भिन्न होते हैं। छठे और दसवें गुणस्थान के राग में भी अंतर होता है। गुरु और संघ के प्रति होने वाला राग भिन्न होता है, यह राग प्रशस्त भी हो सकता है।
पूज्य सन्निधि में 23वें अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षाध्यान शिविर का समापन समारोह आयोजित हुआ। विगत सात दिनों से 23वें अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षाध्यान शिविर के अंतर्गत रूस, यूक्रेन, जापान, वियतनाम, भारत और बेलारूस से 44 शिविरार्थी पूज्य सन्निधि में प्रेक्षाध्यान साधना में लगे हुए थे। प्रेक्षा इंटरनेशनल के मंत्री गौरव कोठारी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। यूक्रेन, जापान, रूस और वियतनाम के प्रतिभागियों ने अपनी प्रस्तुति दी। रणजीत दूगड़ ने अपनी जिज्ञासाएं श्री चरणों में रखीं, जिन्हें आचार्य प्रवर ने समाहित किया। आचार्यश्री द्वारा दी गई आशीर्वाद रूपी वाणी को सभी देशों के प्रतिनिधियों ने अपनी-अपनी भाषा में अनुवाद रूप में प्रस्तुत कर अपने लोगों तक प्रस्तुत किया। प्रेक्षाध्यान शिविर संबंधी कार्यक्रम का संचालन मुनि कुमारश्रमण जी ने किया। पद्मश्री कनुभाई टेलर ने अपने विचार साझा किए। पूज्यवर ने उन्हें आशीर्वचन देते हुए विद्यार्थियों में अच्छे संस्कार भरने की प्रेरणा दी।