निराहार अवस्था में होता है अपनी अंतः शक्ति का अहसास

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निराहार अवस्था में होता है अपनी अंतः शक्ति का अहसास

मुनि मोहजीत कुमारजी के सान्निध्य में जसवन्त डोसी ने 31 दिन की तपस्या कर डोसी कुल में इतिहास बनाया। उनके तप अनुमोदना के कार्यक्रम में अनुमोदन गीत की प्रस्तुति के साथ मुनि मोहजीत कुमार ने कहा- हमारे इस चातुर्मास की यह तपस्या विशेष उपलब्धि है। जैन धर्म में तप का इतिहास बहुत प्राचीन है। आज भी अनेकों तपस्वी जन तप गंगा में स्नान कर अन्तः करण से पवित्रता की ओर अग्रसर होते हैं। तप के प्रभाव की व्याख्या करते हुए मुनि जयेश कुमार जी ने कहा- ऐसी बड़ी तपस्याएं रोलरकॉस्टर की तरह होती है। इनमें अनेक उतार चढ़ाव आते हैं, रोज़ नए अनुभव होते हैं। व्यक्ति जब खाता है तब उसे सिर्फ बाहरी शक्ति का बोध होता है पर निराहार अवस्था में उसे अपनी अंतः शक्ति का अहसास होता है। इस अवसर पर उन्होंने गीत के द्वारा तपस्वी भाई के प्रति अनुमोदना के स्वर प्रकट किये। इस अवसर पर विशेष रूप से उपस्थित चिकमगलूर विधायक एच. डी. तम्मय्या ने अपनी प्रसन्नता प्रकट करते हुए तपस्वी भाई जसवन्त डोसी की तपस्या के प्रति शुभकामना की। उन्होंने कहा- ऐसा तप जैन धर्म के अनुयायी ही कर सकते हैं। जैन धर्म में इस प्रकार की तपस्या करना बड़े साहस और भाग्य की बात है। मैं अपने क्षेत्र और जनता की ओर से आपकी तपस्या की बधाई देता हूं।
आज मुझे इस अवसर पर याद किया तथा मुनिवरों के दर्शन हुए, मैं अपने आपको भाग्यशाली मानता हूं। डॉ. चन्द्रशेखर शालीमठ ने विचार व्यक्त करते हुए कहा- तप जीवन की स्वस्थता का आधार है। तप करने वाला व्यक्ति अनेक बीमारियों से मुक्त हो जाता है। हम लोगों के पास अनेक मरीज आते हैं। उन्हें भी हम कहते है कि खाने में गलत वस्तुओं का उपयोग मत करो। आज मुझे खुशी है कि इतनी बड़ी तपस्या करने वाले भाई जसवन्त का अभिनन्दन करने का अवसर मिल रहा है। क्षेत्रीय विधान परिषद के सदस्य सी.टी. रवि की धर्म पत्नी पल्लवी रवि ने अपने भावों को प्रकट करते हुए कहा कि आज का दिन मेरे सौभाग्य का विशेष दिन है, यहां मुझे एक विशिष्ट तपस्वी का सम्मान एवं मुनि जनों के दर्शन का अवसर मिला। मासखमण तपाराधना अनुमोदन समारोह में तपस्वी के परिजनों ने अभिवन्दना के स्वर मुखर किए। इस अवसर पर सभाध्यक्ष महेन्द्र डोसी, तेयुप अध्यक्ष जयेश गादिया, महिला मण्डल की सदस्याओं ने तपाभिनन्दन गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि भव्यकुमार जी ने किया।