देश और विदेश में होता रहे अहिंसा, नैतिकता व संयम का प्रसार : आचार्यश्री महाश्रमण
भारतीय संस्कृति में कार्तिक शुक्ल द्वितीया का दिन भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। यह दिन तेरापंथ धर्म संघ के लिए भी महत्वपूर्ण है। आज से 110 वर्ष पूर्व इसी दिन तेरापंथ धर्म संघ के नवम अधिशास्ता, आचार्यश्री तुलसी का जन्म हुआ था। इस दिन को धर्म संघ अणुव्रत दिवस के रूप में भी मनाता है। इसी दिन आचार्यश्री तुलसी ने समण श्रेणी का अवदान इस धर्म संघ को दिया था।
आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगम वाणी की व्याख्या करते हुए कहा कि आयारो आगम में वर्णित है कि जिसने मूल और अग्र का विवेचन कर लिया है, कर्मों के क्षय का मार्ग देख लिया है, उसने निष्कर्म दर्शन प्राप्त कर लिया है। यह मार्ग अध्यात्म का है। भगवान महावीर ने जन्म लिया, मार्ग देखा, उस पर चले और अंततः मंजिल को प्राप्त किया। किसी भी लक्ष्य को पाने के चार चरण होते हैं: मार्ग को देखना, जानना, चलने का संकल्प करना, और मंजिल को प्राप्त करना। आचार्य भिक्षु ने भी एक मार्ग अपनाया और उस पर चलते हुए बोधि प्राप्त की।
आज ही के दिन आचार्यश्री तुलसी का जन्म लाडनूं के खटेड़ परिवार में हुआ था। 12 वर्ष की आयु में वे दीक्षित हो गए और कार्तिक शुक्ल द्वितीया का दिन उनके साथ जुड़कर पावन बन गया। यह दिन समण श्रेणी का भी जन्म दिवस है, जिसे 44 वर्ष पूरे हो रहे हैं। पहली बार इसमें साध्वीप्रमुखाजी सहित छह बहनों को समणी दीक्षा दी गई थी, जिनमें अब केवल समणी कुसुमप्रज्ञाजी और समणी मधुरप्रज्ञाजी शेष हैं।
अणुव्रत दिवस भी आज का प्रतिष्ठित दिन है। परम पूज्य कालूगणी का जन्म भी शुक्ला द्वितीया है और उनके सुशिष्य और अनंतर उत्तराधिकारी परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी का जन्मदिवस भी शुक्ला द्वितीया है। वे तेरापंथ धर्मसंघ के अद्वितीय आचार्य थे। आचार्यश्री तुलसी के जन्म को 110 वर्ष हो गए। मुझे परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी की जन्म शताब्दी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जन्म शताब्दी को मनाने का अवसर मिल गया। वे हमारे गुरु तो थे ही और भी साधु-साध्वियों ने उनका साया प्राप्त किया। गुरुदेव तुलसी ने अपने समय की समस्याओं को देखते हुए अणुव्रत कार्यक्रम प्रस्तुत किया, जिससे लोगों की विचारधारा में सकारात्मक परिवर्तन आया। अणुव्रत के 11 नियमों की आचार संहिता मानव निर्माण की दिशा में एक पथ प्रदर्शक है।
विदेश में हो या देश में अहिंसा, नैतिकता व संयम का प्रसार होता रहे और लोगों में सदाचार, संयम, अहिंसा के भाव पुष्ट होते रहें। अपने उद्बोधन में साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि मनुष्य निर्माण में अपनी शक्ति का सदुपयोग करो। गुरुदेव तुलसी का सपना था कि इंसान एक अच्छा इंसान बने। इसी उद्देश्य से अणुव्रत कार्यक्रम लाया गया। साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने अपने वक्तव्य में कहा कि गुरुओं के दो प्रकार होते हैं - पंडित गुरु और धर्म गुरु। पंडित गुरु केवल ज्ञान सम्पन्न होते हैं, जबकि धर्म गुरु ज्ञान, आचार और चारित्र में सम्पन्न होते हैं। गुरुदेव तुलसी एक महान धर्म गुरु थे, जिन्होंने कई व्यक्तियों का व्यक्तित्व निर्माण किया। उन्होंने सही दिशा में पुरुषार्थ किया और समाज को नई दिशा दी। जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित और समणी ज्योतिप्रभाजी द्वारा संकलित 'उपमा कोश' पुस्तक का लोकार्पण पूज्यवर की सन्निधि में किया गया।
साध्वी नीतिप्रभाजी ने गुरुदेव श्री तुलसी की स्तुति में गीत प्रस्तुत किया। समणीवृंद ने आचार्यश्री तुलसी के जन्मदिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया। समणी कुसुमप्रज्ञाजी, समणी मधुरप्रज्ञाजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। मुमुक्षु ऋषिका, खटेड़ परिवार के छतर खटेड़ ने अपनी अभिव्यक्ति दी। खटेड़ परिवार के सदस्यों ने गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।