मृत्यु से मुक्ति की दिशा में बढ़ें आगे : आचार्यश्री महाश्रमण
मंगलदाता बोधि प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुजराती नववर्ष के प्रथम दिन वृहद् मंगल पाठ की अमृत वर्षा करवाई और उपस्थित जनता को एक-एक संत का परिचय प्रदान करवाया। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में 'आयारो'आगम वाणी का रसास्वादन कराते हुए आचार्य प्रवर ने फरमाया कि जो आत्मदर्शी होता है, वह मृत्यु से मुक्त हो जाता है। इस संसार में मृत्यु भय का एक कारण बन सकती है। संसार में मृत्यु के बाद जन्म का चक्र चलता रहता है, लेकिन जो मृत्यु से मुक्त हो गया, वह जन्म से भी मुक्त हो गया।
निष्कर्मदर्शी, आत्मदर्शी, और मोक्षदर्शी वही होता है जिसने राग-द्वेष का क्षय कर लिया है। ऐसा व्यक्ति मरण से हमेशा के लिए प्रमुक्त और विमुक्त हो जाता है। भगवान महावीर का निर्वाण इसी कारण हुआ कि अब उनके लिए न जन्म है, न मृत्यु। मोक्ष में जो आत्मा जाती है, वह निर्वाण को प्राप्त कर लेती है। भगवान महावीर ने लगभग साढ़े बारह वर्षों तक साधना की और अनेक कर्मों का निर्जरण कर राग-द्वेष को समाप्त किया। केवलज्ञान उसी को प्राप्त होता है जिसका मोह क्षय हो जाता है। राग-द्वेष को जीतने की साधना कठिन होती है।
पूज्यप्रवर ने आगे फ़रमाया कि प्रेक्षाध्यान का उद्देश्य यह होना चाहिए कि हमारे राग-द्वेष क्षीण हों, कषाय मंद पड़ें। सघन साधना और संयम के द्वारा बहुत अच्छी साधना संभव हो सकती है। शिविरों की साधना भी हमें निष्कर्मता की ओर अग्रसर करने में सहायक हो सकती है। हम भी मृत्यु से मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें। इस अवसर पर संस्कार निर्माण शिविर एवं सघन साधना शिविर का भी शुभारंभ हुआ। साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने शिविर से संबंधित देते हुए कहा कि जीवन में कला का महत्व होता है और सबसे बड़ी कला है जीवन जीने की कला। यह सघन साधना शिविर बच्चों को जीवन जीने की कला सिखाकर आत्मोन्नति की ओर ले जाएगा। इस शिविर के माध्यम से साधु जीवन का अनुभव प्राप्त होगा और यह शिविरार्थियों को एक नई दिशा दे सकेगा, जिससे जीवन कलात्मक बन सकेगा। मुनि राजकुमार जी ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि कीर्तिकुमारजी ने किया।