आत्मा की निर्मलता में रहना है सबसे बड़ा धन : आचार्यश्री महाश्रमण
शांति के सुमेरू आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि 'आयारो' आगम में कहा गया है - हिंसा के संदर्भ में बताया गया है कि आसक्तिमान मनुष्य आमोद-प्रमोद के लिए जीवों का वध करके हर्षित होता है। हमारी दुनिया में उल्लास, आमोद-प्रमोद और मनोरंजन जैसी स्थितियां देखने को मिलती है। दीपावली का समय भी हर्ष, उल्लास, उमंग और खुशी का अनुभव कराने वाला बन सकता है मनोरंजन दो प्रकार का हो सकता है - एक सात्विक मनोरंजन और दूसरा तामसिक-असात्विक मनोरंजन। मनोरंजन से भी बड़ा आत्म रमण होता है। कई बुद्धिजीवी व्यक्ति काव्य शास्त्र से आमोद-प्रमोद करते हैं। असात्विक मनोरंजन से हिंसा हो सकती है। ऐसा मनोरंजन नहीं करना चाहिए जिससे प्राणी को कष्ट हो। हमें असात्विक मनोरंजन से बचना चाहिए।
हास्य-विनोद जो हिंसा से जुड़ा हो, वह नहीं करना चाहिए। दीपावली पटाखों से नहीं मनानी चाहिए क्योंकि इससे हिंसा हो सकती है और पर्यावरण भी दूषित होता है। दीपावली के संदर्भ में आज से तेले का अनुष्ठान शुरू हो रहा है। यह विशुद्ध आध्यात्मिक रूप है। तेले में भी जप करना उत्तम है। यह दीपावली का धार्मिक रूप है। शरीर की स्वस्थता भी एक धन है। आत्मा की निर्मलता में रहना अपने आप में बहुत बड़ा धन है। हमारे कर्मों के पटाखे फूटें, हम अपने कर्म करें। तपस्या से कर्म निर्जरा हो। जप-तप आदि चलता रहे। व्यक्ति का मन प्रसन्न रहे। जो हमेशा हितकर आहार करने वाला, विहार करने वाला, विषयों में अनासक्त रहने वाला, दाता, समभाव में रहने वाला, सत्यवान, क्षमावान और वीतराग की सेवा करने वाला होता है, वह व्यक्ति निरोग रहता है।
आज धनतेरस और धन्वंतरी जयंती है। जीवन में साधना भी तपोधन है। ज्ञान, बुद्धि और कार्यक्षमता भी धन है। मुमुक्षु-बोधार्थी बहनें इनसे धनवान बनें। यह धन खूब बढ़े। आध्यात्मिक धर्म सच्चा धन है, इसे प्राप्त करने का प्रयास करें। इससे हम भी वर्धमान बनें। पूज्यवर ने तेले की तपस्या करने वालों को उपवास के प्रत्याख्यान करवाए और साथ में जप करने की प्रेरणा भी प्रदान की। साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि आदमी दुनिया में आता है, कुछ दिन रहता है और चला जाता है। जीवन क्षणभंगुर है, इसका समय पर सदुपयोग करना सीखें। धर्म करने वालों की रात्रियां सफल होती हैं। हम जीवन को धर्म से सफल बना सकते हैं। धर्म जागरूकता है। हमें क्षण भर भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। सत्पुरुषार्थ करते रहें।
मुनि हितेन्द्रकुमारजी ने आचार्य भिक्षु पर अपनी भावनाएं व्यक्त की। उपासक प्रभु भाई मेहता, भुज ने अपनी भावनाएं व्यक्त की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।